Anurag Asati Classes

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विधायिका - Class 11th Political Science | Chapter-5 | Legislature | vidhayika Notes In Hindi

 विधायिका  - Class 11th Political Science | Chapter-5 | Legislature | vidhayika Notes In Hindi

विधायिका  - Class 11th Political Science | Chapter-5 | Legislature | vidhayika Notes In Hindi


सरकार के तीन अंग

कार्यपालिका - क़ानून को लागू करवाना

विधायिका - क़ानून बनाना

न्यायपालिका – न्याय करना, विवादों को सुलझाना

विधायिका से क्या अभिप्राय है

विधायिका जनता के द्वारा निर्वाचित होती है और जनता के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है

विधायिका कानून का निर्माण करती है

संघ की विधायिका को संसद कहलाती है

यह राष्ट्रपति और दोनों सदन, राज्य सभा और लोकसभा से बनती है

राज्यों की विधायिका को विधानसभा या विधानमंडल कहते हैं

विधायिका से क्या अभिप्राय है

विधायिका जनता के द्वारा निर्वाचित होती है और जनता के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है

विधायिका कानून का निर्माण करती है

संघ की विधायिका को संसद कहलाती है

यह राष्ट्रपति और दोनों सदन, राज्य सभा और लोकसभा से बनती है

राज्यों की विधायिका को विधानसभा या विधानमंडल कहते हैं

केंद्र सरकार 

संघ सरकार

हमें संसद क्यों चाहिए ?

विधायिका का कार्य केवल कानून बनाना नहीं है।

विधायिका के अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों में से कानून बनाना भी एक कार्य है।

संसद में बहुत-से दृश्य देखने को मिलते हैं। सदन में बहस, विरोध, प्रदर्शन, सर्वसम्मति, सरोकार और सहयोग आदि इसे अत्यंत जीवंत रखते हैं।

विधायिका जन-प्रतिनिधियों (नेता) का जनता के प्रति उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती है।

यह वास्तव में लोकतंत्र का आधार है।

अधिकांश लोकतंत्रों में कार्यपालिका के मुकाबले विधायिकाएँ अपना महत्व खोती जा रही हैं।

लेकिन भारत में विधायिका का महत्व आज भी है

शक्तिशाली मंत्रिमंडल को भी विधायिका में बहुमत की आवश्यकता होती है।

नेता को भी संसद का सामना करना पड़ता है और संसद को अपने जवाबों से संतुष्ट करना पड़ता है।

यह हमें संसद की लोकतांत्रिक क्षमता का एहसास कराता है।

यह वाद-विवाद का सबसे लोकतांत्रिक और खुला मंच है।

अपनी संरचनात्मक विशेषता के कारण यह सरकार के अन्य सभी अंगों में सबसे ज्यादा प्रतिनिधिक है। और फिर, इसके पास सरकार (कार्यपालिका) का चयन करने और उसे बर्खास्त करने की शक्ति भी है।


संसद के दो सदन ?

भारत की राष्ट्रीय विधायिका का नाम संसद है।

राज्यों की विधायिकाओं को विधान मंडल या विधान सभा कहते हैं।

भारतीय संसद में दो सदन हैं।

जब किसी विधायिका में दो सदन होते हैं, तो उसे द्विसदनात्मक विधायिका कहते हैं।

भारत की संसद के एक सदन को राज्य सभा और दूसरे सदन को लोक सभा कहते हैं।

संविधान ने राज्यों को एक सदनात्मक या द्वि-सदनात्मक विधायिका स्थापित करने का विकल्प दिया है।

अब केवल छह राज्यों में ही द्वि-सदनात्मक विधायिका है।

भारत विविधताओं से परिपूर्ण एक विशाल देश है

ऐसे में द्वि-सदनात्मक राष्ट्रीय विधायिका की आवश्यकता हैं,

ताकि वे अपने समाज के सभी वर्गों और देश के सभी क्षेत्रों या भागों को समुचित प्रतिनिधित्व दे सकें।

द्वि-सदनात्मक विधायिका का एक लाभ यह है कि संसद के प्रत्येक निर्णय पर दूसरे सदन में पुनर्विचार हो जाता है।

एक सदन में लिया गए निर्णय को दूसरे सदन में निर्णय के लिए भेजा जाता है।

इसका मतलब यह कि प्रत्येक विधेयक और नीति पर दो बार विचार होता है।

इससे हर मुद्दे को दो बार जाँचने का मौका मिलता है।

यदि एक सदन जल्दबाजी में कोई फैसला ले लेता है तो दूसरे सदन में बहस के दौरान उस पर पुनर्विचार हो पाता है।


राज्य सभा

राज्य सभा को उच्च सदन भी कहते है यह राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है

राज्य सभा एक स्थाई सदन है इसे कभी भंग नहीं किया जा सकता

राज्यसभा के सदस्यों का चुनाव अप्रत्यक्ष प्रणाली से होता है

किसी राज्य के लोग राज्य की विधान सभा के सदस्यों को चुनते हैं।

फिर विधायक (MLA), राज्य सभा के सदस्यों को चुनते हैं।

राज्यसभा में अधिकतम सदस्य 250 हो सकते हैं जिसमे 238 राज्यों से और 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं

राज्य सभा में प्रतिनिधित्व के लिए दो सिद्धांतों का प्रयोग किया जा सकता है।

1) पहला तरीका यह हो सकता है कि

देश के सभी क्षेत्रों को असमान आकार और जनसंख्या के बावजूद द्वितीय सदन में समान प्रतिनिधित्व दिया जाए।

2) दूसरा तरीका यह हो सकता है कि

देश के विभिन्न क्षेत्रों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में असमान प्रतिनिधित्व दिया जाए । अर्थात, ज्यादा जनसंख्या वाले क्षेत्रों को ज्यादा और कम जनसंख्या वाले क्षेत्रों को कम प्रतिनिधित्व प्राप्त हो ।

अमेरिका के द्वितीय सदन (सीनेट) में

प्रत्येक राज्य को समान प्रतिनिधित्व दिया गया है।

यह सभी राज्यों में समानता स्थापित करता है।

लेकिन इसका अर्थ यह भी है कि छोटे राज्यों को बड़े राज्यों के बराबर ही प्रतिनिधित्व मिलेगा।

लेकिन हमारी राज्य सभा के लिए इस अमेरिकी प्रतिनिधित्व प्रणाली से अलग तरीका अपनाया गया है।

भारतीय संविधान की चौथी अनुसूची में प्रत्येक राज्य से निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है।

यदि हम राज्य सभा में प्रतिनिधित्व के लिए 'अमेरिका की

समान-प्रतिनिधित्व प्रणाली का प्रयोग करें तो परिणाम कुछ ऐसा होगा -

लगभग 20 करोड़ जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश को 6.10 लाख जनसंख्या वाले सिक्किम के बराबर ही प्रतिनिधित्व मिलेगा।

संविधान निर्माता ऐसी विसंगति से बचना चाहते थे।

इसलिए ज़्यादा जनसंख्या वाले राज्यों को अधिक और कम जनसंख्या वाले राज्यों को कम प्रतिनिधित्व दिया गया है।

इस प्रकार, ज़्यादा जनसंख्या वाले उत्तर प्रदेश को 31 सीट तथा छोटे और कम जनसंख्या वाले सिक्किम को राज्य सभा में 1 सीट दी गयी है

राज्य सभा के सदस्यों को 6 वर्ष के लिए निर्वाचित किया जाता है।

उन्हें दुबारा निर्वाचित किया जा सकता है।

राज्य सभा के सभी सदस्य अपना कार्यकाल एक साथ पूरा नहीं करते।

प्रत्येक दो वर्ष पर राज्य सभा के एक तिहाई सदस्य अपना कार्यकाल पूरा करते हैं

और इन एक तिहाई सीटों के लिए चुनाव होते हैं।

इस तरह राज्य सभा कभी भी पूरी तरह भंग नहीं होती । अतः इसे संसद के स्थायी सदन कहा जाता है

निर्वाचित सदस्यों के अलावा राज्य सभा में 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं।

यह साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के क्षेत्र से हो सकते है

लोक सभा

लोक सभा और राज्यों की विधान सभाओं के लिए जनता सीधे सदस्यों को चुनती है।

यह प्रत्यक्ष निर्वाचन कहलाता हैं।

लोक सभा चुनावों के लिए पूरे देश को और विधान सभा चुनावों के लिए

किसी राज्य को लगभग समान जनसंख्या वाले निर्वाचन क्षेत्रों में बाँट दिया जाता है।

प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से एक प्रतिनिधि चुना जाता है;

चुनाव सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के आधार पर होता है जिसमें हर व्यक्ति के वोट का मूल्य दूसरे व्यक्ति के वोट के मूल्य के बराबर होता है।

लोक सभा के 543 निर्वाचन क्षेत्र है ।


लोक सभा के लिए सदस्यों को 5 वर्ष के लिए चुना जाता है।

लेकिन यदि कोई दल या दलों का गठबंधन सरकार न बना सके अथवा प्रधान मंत्री राष्ट्रपति को लोक सभा भंग कर नए चुनाव कराने की सलाह दे तो लोक सभा को 5 वर्ष के पहले भी भंग किया जा सकता है।

*लोकसभा में राष्ट्रपति 2 सदस्यों को मनोनीत करता था जो एंग्लो इंडियन समुदाय से होते थे लेकिन इस आरक्षण को अब समाप्त कर दिया गया है

संसद के प्रमुख कार्य

कानून बनाना ।

कार्यपालिका पर नियंत्रण ।

वित्तीय कार्यः बजट पारित करना

संविधान संशोधन |

निर्वाचन संबंधी कार्य ।

 न्यायिक कार्य ।

प्रतिनिधित्व ।

विदेश नीति पर नियन्त्रण

बहस का मंच |

विचारशील कार्य

संसद क़ानून कैसे बनाती है

संसद का मुख्य कार्य जनता के लिए कानून का निर्माण करना है।

कानून बनाने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया अपनाई जाती है।

एक विधेयक कई अवस्थाओं से गुजर कर कानून बनता है

प्रस्तावित कानून के प्रारूप को विधेयक कहते हैं। विधेयक कई तरह के हो सकते हैं यदि विधेयक मंत्री के द्वारा प्रस्तुत किया जाये तो इसे सरकारी विधेयक कहते हैं

लेकिन यदि विधेयक मंत्री के अतिरिक्त कोई और सदस्य पेश करें तो ऐसे विधेयक को 'निजी सदस्यों का विधेयक' कहते हैं।


विधेयक के प्रकार

सरकारी विधेयक

निजी सदस्यों का विधेयक

वित्त विधेयक

गैर - वित्त विधेयक

सामान्य विधेयक

संविधान संसोधन विधेयक


संसद में विधेयक प्रस्तुत करने से पहले ही इस बात पर काफी बहस होती है

कि क्या इस विधेयक को लाने की जरूरत है या नहीं ।

कोई राजनीतिक पार्टी अपने चुनावी वायदों को पूरा करने या आगामी चुनावों को जीतने के इरादे से किसी विधेयक को प्रस्तुत करने के लिए सरकार पर दबाव डाल सकता है।

विधेयक बनाने में अनेक बातों का ध्यान रखना पड़ता है, जैसे- कानून को लागू करने के लिए जरूरी संसाधनों को कहाँ से जुटाया जाएगा, विधेयक का कितना संमर्थन और विरोधं होगा, प्रस्तावित कानून से सत्तारूढ़ दल की चुनावी संभावनाओं पर क्या प्रभाव पढ़ेगा आदि।

गठबंधन सरकारों के युग में सरकार द्वारा प्रस्तावित विधेयक को गठबंधन के सभी घटक दलों का भी समर्थन प्राप्त होना चाहिए। इन व्यावहारिक बातों की उपेक्षा नहीं की जा सकती।

कानून बनाने का निर्णय लेने से पहले मंत्रिमंडल इन सभी बातों पर विचार करता है।

एक बार जब मंत्रिमंडल उस नीति को स्वीकार कर लेता है तब विधेयक का प्रारूप बनाने का कार्य शुरू होता है। विधेयक जिस मंत्रालय से संबद्ध होता है, वही मंत्रालय उसका प्रारूप बनाता है।

विधेयक संसद के किसी भी सदन लोक सभा या राज्य सभा में कोई भी सदस्य इस विधेयक को पेश कर सकता है

 ( जिस विषय का विधेयक हो उस विषय से जुड़ा मंत्री ही अकसर विधेयक पेश करता है)।

किसी धन विधेयक को केवल लोक सभा में ही प्रस्तुत किया जा सकता है।

लोक सभा में पारित होने के बाद उसे राज्य सभा में भेज दिया जाता है।

विधेयक जब एक सदन में पारित हो जाता है

उसके बाद उसे दूसरे सदन में भेजा जाता है

जब विधेयक दूसरे सदन में भी पारित हो जाता है

उसके बाद विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है

राष्ट्रपति की स्वीकृति मिलते ही यह विधेयक कानून बन जाता है

धन विधेयक को राज्य सभा या तो स्वीकार कर सकती है या संशोधन प्रस्तावित कर सकती है.

लेकिन राज्यसभा धन विधेयक को अस्वीकार नहीं कर सकती है।

यदि राज्य सभा 14 दिनों तक उस पर कोई निर्णय न ले तो उसे राज्य सभा के द्वारा पारित मान लिया जाता है।

विधेयक के बारे में राज्य सभा द्वारा प्रस्तावित संशोधनों को लोक सभा मान भी सकती है और नहीं भी ।

संसद कार्यपालिका को कैसे नियंत्रित करती है ?

जिस दल या दलों के गठबंधन को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है

उसी दल के सदस्यों को मिलाकर संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका बनती है।

ऐसा हो सकता है कि बहुमत की ताकत पाकर यह कार्यपालिका अपनी शक्तियों का मनमाना प्रयोग करने लगे।

ऐसी स्थिति में संसदीय लोकतंत्र मंत्रिमंडल को तानाशाही में बदल सकता है

जिसमें मंत्रिमंडल जो कहेगा सदन को वही मानना पड़ेगा।

लेकिन जब संसद सचेत होगी, तभी वह कार्यपालिका पर नियमित और प्रभावी नियंत्रण रख सकेगा।

संसद के तरीकों से कार्यपालिका को नियंत्रित करती है।

संसद द्वारा कार्यपालिका को नियंत्रित करने के तरीके ?

बहस - वाद विवाद

कानून की स्वीकार या अस्वीकार करना

वित्तीय नियंत्रण

अविश्वास प्रस्ताव

संसदीय समिति क्या करती है ?

विभिन्न विधायी कार्यों के लिए संसदीय समिति का गठन किया जाता है

यह समितियाँ केवल कानून बनाने में ही नहीं, वरन् सदन के दैनिक कार्यों में भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

संसद केवल अपने अधिवेशन के दौरान ही बैठती है इसलिए उसके पास कम समय होता है।

किसी कानून को बनाने के लिए उससे जुड़े विषय का गहन अध्ययन करना पड़ता है। इसके लिए उस पर ज्यादा ध्यान और समय देने की जरूरत पड़ती है।

इसके अलावा और भी महत्त्वपूर्ण कार्य होते हैं जैसे विभिन्न मंत्रालयों की अनुदान माँगों का अध्ययन, विभागों के द्वारा किए गए खर्चों की जाँच, भ्रष्टाचार के मामलों की पड़ताल आदि 

विभिन्न विभागों से संबंधित ऐसी 20 समितियाँ हैं। यह स्थायी समितियाँ विभिन्न विभागों के कार्यों, उनके बजट खर्चे, तथा उनसे संबंधित विधेय

कों की देखरेख करती है।

संसद स्वयं को कैसे नियंत्रित करती है ?

संसद स्वयं को अनुशासित करके नियंत्रित करती

संसद का अध्यक्ष विधायिका की कार्यवाही के मामलों में सर्वोच्च अधिकारी होता है। यदि कोई सदस्य सदन के नियमों का उल्लंघन करता है तो ऐसे में अध्यक्ष उसे सदन से बहार कर सकता है

यदि कोई सदस्य अपने दल के नेतृत्व के आदेश के बावजूद सदन में उपस्थित न हो या दल के निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करें अथवा स्वेच्छा से दल की सदस्यता से त्यागपत्र दें उसे 'दलबदल' कहा जाता है।

अध्यक्ष उसे सदन की सदस्यता के अयोग्य ठहरा सकता है।

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