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Class 12th Hindi Chapter-6 उषा ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Usha - Easy Explained | Sandarbh Prasang Vyakhya

Class 12th Hindi Chapter-6 उषा ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Usha - Easy Explained 

Class 12th Hindi Chapter-6 उषा ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Usha - Easy Explained | Sandarbh Prasang Vyakhya

परिचय:-

उषा कविता में प्रातः कालीन सौन्दर्य के रंग रूप और वातावरण का चित्रण किया गया है |

इस कविता में भोर के बाद उषाकाल के दौरान होने वाले सूर्योदय का सुंदर चित्रण किया गया है | 

सन्दर्भ :-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित तथा कवियों के कवि शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित प्रसिद्ध कविता ‘उषा’ से लिया गया है | 

प्रात नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका

(अभी गीला पड़ा है)

प्रसंग :-

इस काव्यांश में कवि ने भोर के बाद उषाकाल के दौरान होने वाले सूर्योदय का सुन्दर चित्रण तथा वर्णन किया है |  

व्याख्या :-

प्रातः कालीन आकाश का चित्रण करते हुए कवि कहता है की सूर्योदय से पहले भोर के समय आसमान नीले शंख जैसा लग रहा था |

आकाश का रंग रात की नमी के कारण ऐसा लग रहा था, जैसे रख से लीपा हुआ गीला चौका हो | 

Note- चौका -  रसोई बनाने का स्थान 

प्रातः कालीन वातावरण में ओस और नमीं है, गीले चौके में भी यही नमी है |

इसलिए दोनों की समानता के कारण चौके को गीला बताया गया है | 


बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से

कि जैसे धुल गई हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने

प्रसंग :-

इस काव्यांश में कवि ने भोर के बाद उषाकाल के दौरान होने वाले सूर्योदय का सुन्दर चित्रण तथा वर्णन किया है |  

व्याख्या :-

भोर के झुटपुटे में अँधेरे और सूरज की उगती हुई लाली का मिश्रण ऐसा लगता है मानो बहुत गहरी काली सिल थोड़े से लाल केसर में घुल गई हो | अँधेरा काली सिल जैसा प्रतीत होता है और सूरज की लाली केसर की तरह | यह वातावरण ऐसा लगता है मानो किसी ने काली स्लेट पर लाल खड़िया चाक मिट्टी पोत दी हो |  

Note- सिल – मसाला पीसने का पत्थर 

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो।

और...

जादू टूटता है इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा है।


प्रसंग :-

इस काव्यांश में कवि ने भोर के बाद उषाकाल के दौरान होने वाले सूर्योदय का सुन्दर चित्रण तथा वर्णन किया है | 

व्याख्या :-

भोर के समय जब आकाश में गहरा नीला रंग छा जाता है और सूरज की श्वेत आभा दिखने लगती है तो उस समय का सौन्दर्य ऐसा प्रतीत होता है मानो नीले रंग के जल में किसी सुंदरी की गोरी देह झिलमिल कर रही हो |  

कुछ समय बाद, जब सूर्योदय हो जाता है, तब उषा के पल पल बदलते रंगों का सौन्दर्य एकदम छूमंतर हो जाता है, अर्थात सूर्योदय हो जाता है और प्रकृति के रंग समाप्त हो जाते हैं |

विशेष :- 

  • भाषा सहज तथा संस्कृतनिष्ठ हिंदी |
  • मुक्त छंद का प्रयोग हुआ है |
  • विभिन्न अलंकारों का सुन्दर तरीके से प्रयोग किया गया है |
  • उषा का मानवीकरण हुआ है |
  • प्रतीकों का सुन्दर प्रयोग किया गया है, जैसे : नीला जल, गौर झिलमिल देह, स्लेट 
  • ‘शंख जैसे’ में उपमा है |
  • कविता के वर्णन में चित्रात्मकता है |
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