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Class 12th Hindi Chapter-8 लक्ष्मण- मूर्छा और राम का विलाप ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Lakshman Murcha aur Ram ka Vilap - Easy Explained

 Class 12th Hindi Chapter-8 लक्ष्मण- मूर्छा और राम का विलाप ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Lakshman Murcha aur Ram ka Vilap  - Easy Explained 

Class 12th Hindi Chapter-8 लक्ष्मण- मूर्छा और राम का विलाप ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Lakshman Murcha aur Ram ka Vilap  - Easy Explained

सन्दर्भ:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ में संकलित गोस्वामी तुलसीदास जी की अमर कृति ‘रामचरित मानस’ के लंका काण्ड में वर्णित प्रसंग ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ से लिया गया है |

तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।

अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत।।

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।

मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार।।

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश में उस समय का वर्णन है जब मेघनाथ द्वारा चलाए गए शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो जाते हैं |

व्याख्या:-

लक्ष्मण के मूर्छित होने के बाद श्री राम उनकी दशा देखकर विलाप कर रहे थे | सुषेण वैद्य की सलाह पर संजीवनी लेने गए हनुमान की लौटते समय मार्ग में, अयोध्या में भरत से भेंट हुई | 

लक्ष्मण की ऐसी अवस्था देखकर श्रीराम चिंतित हो उठते हैं | हनुमान संजीवनी बूटी को पहचान नहीं पाए इसलिए पूरे पर्वत को ही उठा ले चले | 

हनुमान भरत से बोले हे नाथ ! हे प्रभु ! आप बड़े प्रतापी यह बात मन में धारण करके मैं आपके बाण पर बैठकर तुरंत चला जाऊंगा |

ऐसा कहकर भारत के चरणों की वंदना करके उनसे आज्ञा लेकर हनुमान लंका की ओर चल पड़े |

हनुमान भरत के बाहुबल, व्यवहार, गुण तथा राम के चरणों में अपार प्रेम देखकर उनकी मन ही मन बार बार सराहना करते हुए पवन पुत्र हनुमान मार्ग में चले जा रहे थे |


उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी।।

अर्ध राति गइ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायऊ।।

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ। बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ।।

मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु बिपिन हिम आतप बाता।।

सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई।।

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पितु बचन मनतेउँ नहिं ओह।।

प्रसंग:- 

इस काव्यांश में तुलसीदास जी ने दुःख की स्थिति के प्रभाव को दर्शाते हुए बताया है की दुःख में समर्थ से समर्थ व्यक्ति भी असहाय हो जाता है | 

व्याख्या:-

उधर लंका में राम ने मूर्छित लक्ष्मण की ओर देखा |

वे अधीर होकर मनुष्यों की तरह शोक-भरे वचन कहने लगे | 

बोले आधी रात बीत गई है, हनुमान अभी तक नहीं आए | राम ने अधीर होकर अपने अनुज लक्ष्मण को उठाकर छाती से लगा लिया | 

राम बोले – हे भाई ! तुम अपने होते मुझे कभी दुखी नहीं देख सके | तुम्हारा स्वभाव हमेशा से ही ऐसा कोमल और मृदु रहा है | तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता तक को त्याग दिया |

और जंगल में रहकर  बर्फ, धूप और आंधी तूफ़ान के कष्टों को सहते रहे |

ओ प्रिय भाई लक्ष्मण ! तुम्हारा वह पहले जैसा प्रेम अब कहाँ है ? तुम मेरे व्याकुलतापूर्वक वचन सुनकर उठते क्यों नहीं ? यदि मुझे पता होता कि मुझे वन में अपने भाई से बिछुड़ना पड़ेगा तो मैं अपने पिता के वचन मानने से इनकार कर देता और वन में न आता | 

सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा।।

अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता।।

जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।।

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही।।

जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई।।

बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं।।


प्रसंग:- 

यहाँ राम लक्ष्मण की मूर्छित अवस्था को देखकर बहुत ज्यादा विचलित हो रहे हैं | राम कह रहे हैं की वह अयोध्या जाकर लोगों के प्रश्नों का क्या उत्तर देंगे |

व्याख्या:-

भाई लक्ष्मण ! इस संसार में पुत्र, धन, पत्नी, मकान और परिवार बार बार बनते हैं और बिगड़ते हैं | ये जीवन में आते हैं और फिर चले भी जाते हैं | परन्तु सगा भाई चाहकर भी दोबारा नहीं लाया जा सकता |

मन में यह विचार करके तुम तुरंत जाग जाओ | 

हे लक्ष्मण ! हे मेरे भाई ! जिस प्रकार पक्षी पंखों के बिना दीन-हीन हो जाता है | जैसे मणि के बिना सांप और सूंड के बिना हाथी की दुर्दशा होती है , वैसे ही यदि दुर्भाग्य से कठोरतापूर्वक मुझे तुम्हारे बिना जीवित रखा तो मेरे जीवन की दशा भी ऐसी ही होगी | 

प्रिय भाई ! मैं अयोध्या में कौन-सा मुंह लेकर जाऊँगा ? लोग कहेंगे की देखो, इसने अपनी पत्नी के लिए सगे भाई को गँवा दिया |

चलो, मैं नारी को खोने का कलंक तो फिर भी सह लूँगा | क्योंकि इस विशेष परिस्थिति में पत्नी की हानि उतनी बड़ी बात नहीं है जितनी की भाई को खोना | 


अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा।।

निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।

सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।।

उतरु काह दैहउँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।

बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन। स्रवत सलिल राजिव दल लोचन।।

उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाई।।

प्रभु प्रलाप सुनि कान बिकल भए बानर निकर

आइ गयउ हनुमान जिमि करुना मँह बीर रस।।

प्रसंग:- 

इस काव्यांश में लक्ष्मण की मूर्छा से व्याकुल और असहाय होकर राम विलाप करते हैं |

व्याख्या:-

अब तो हे पुत्र लक्ष्मण ! मेरा यह निष्ठुर और कठोर ह्रदय नारी खोने का कलंक और तुम्हारा शोक दोनों को ही सहन करेगा, अर्थात् तुम्हारे बिना तो मुझे सीता भी प्राप्त नहीं हो सकती | हे भैया ! तुम अपनी माता के एक ही पुत्र हो और तुम ही उस माँ के प्राणों का आधार हो |

तुम्हारे बिना तुम्हारी माँ भी जीवित नहीं रह पाएंगी | 

हे लक्ष्मण ! तुम्हे हर प्रकार से सुखदायी और हितैषी मानकर ही तुम्हारी माता ने तुम्हारा हाथ पकड़ कर मेरे हाथ में सौंपा था, अब तुम ही बताओ , मैं तुम्हारे बिना उन्हें जाकर क्या उत्तर दूंगा ?

मुझे यह बात सिखाते क्यों नहीं ? 

इस प्रकार संसार के प्राणियों को चिंतामुक्त करने वाले श्रीराम स्वयं अनेक प्रकार की चिंताओं में डूब गए | उनके कमल जैसे विशाल नयनों से आंसुओं का प्रवाह होने लगा | तब कथावाचक शिवजी ने पार्वती को कहा – देखो , वे राम जो स्वयं सम्पूर्ण हैं , अखंड हैं , अपने भक्तों को कृपापूर्वक नरलीला दिखा रहे हैं | वे जान बूझकर सामान्य नारों जैसा आचरण कर रहे हैं | 

प्रभु का विलाप सुनकर वानरों का समूह दुःख से व्याकुल हो उठा | तभी हनुमान जी अचानक इस तरह प्रकट हुए जैसे करुण रस में अचानक वीर रस प्रकट हो गया हो |

आशय यह है की हनुमान के आने से शोक का वातावरण वीरता से भर गया | 


हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।।

तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई।।

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरर्षे सकल भालु कपि ब्राता।।

कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा।।

प्रसंग:- 

इस काव्यांश में श्रीराम प्रसन्न होकर हनुमान से भेंट करते हैं तथा वैद्य तुरंत ही लक्ष्मण का उपचार करते हैं |

व्याख्या:-

श्रीराम प्रसन्न होकर हनुमान से भेंट करते हैं | उन्होंने हनुमान का बहुत उपकार माना | तब वैद्य ने तुरंत ही लक्ष्मण का उपचार किया |

परिणामस्वरूप लक्ष्मण प्रसन्नतापूर्वक उठ बैठे और उन्हें होश आ गया | 

राम भाई लक्ष्मण को ह्रदय से लगा कर मिले | यह मिलन देखकर यहाँ उपस्थित सभी भालू , वानर आदि प्रसन्न हो उठे |

हनुमान ने वैद्य को उसी प्रकार तुरंत उस स्थान पर पहुंचा दिया जहाँ से वह उन्हें सम्मान से लेकर आए थे |

यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ।।

ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। बिबिध जतन करि ताहि जगावा।।

जागा निसिचर देखिअ कैसा। मानुहुँ कालु देह धरि बैसा।।

कुंभकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई।।

प्रसंग:- 

इस काव्यांश में यह बताया गया है की लक्ष्मण के होश में आने से रावण किस प्रकार व्याकुल हो उठा तथा अपने भाई कुम्भकरण के पास चला गया |

व्याख्या:-

लक्ष्मण के होश में आने का सारा वर्णन रावण ने सुना | तब वह अत्यंत निराशाजनक होकर पछताने लगा | वह व्याकुल होकर अपने भाई कुम्भकरण के पास गया | उसने विविध प्रकार से उसे गहरी नींद से जगाया |

जागने पर कुम्भकरण ऐसे दिखाई पड़ रहा था मानो साक्षात् काल देह धारण करके बैठा हो |

कुम्भकरण ने रावण से पुछा – कहो भाई, क्या बात है ? तुम्हारे मुहँ सूख क्यों रहे हैं ? 

कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी।।

तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे।।

दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी।।

अपर महोदर आदिक बीरा । पर समर महि सब रनधीरा।।

प्रसंग:- 

इस काव्यांश में यह बताया गया है की किस प्रकार रावण ने कुम्भकरण के साथ वार्तालाप किया |

व्याख्या:-

तब रावण ने अभिमान के साथ वह सारी कथा कह सुनाई की कैसे वह सीता का अपहरण कर लाया था | उसने कहा – भाई कुम्भकरण ! राम के वानरों में कई राक्षस मार डाले हैं |

उन्होंने बड़े बड़े योद्धाओं का संहार कर डाला है |  

दुर्मुख, देवांतक, मनुष्य भक्षक (नरान्तक), महायोद्धा, अतिकाय, भारी-भरकम, अकम्पन और महोदर आदि अन्य वीर रणधीर युद्ध भूमि में मरे पड़े हैं | 

सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।

जगदंबा हरि आनि अब साठ चाहत कल्यान।।

प्रसंग:- 

इस काव्यांश में यह बताया है की रावन के वचन सुनकर कुम्भकरण ने क्या प्रतिक्रिया दी |

व्याख्या:-

रावण के ये कुवचन सुनकर कुम्भकरण दुखी होकर कहने लगा – अरे दुष्ट ! तू जगत जननी सीता का अपहरण करके भी अपना कल्याण चाहता है ? (यह कभी नहीं हो सकता) 

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