Class 11th Hindi Chapter-2 Meera ke Pad | Question Answer | मीरा के पद प्रश्न-उत्तर | आरोह- Aroh
Class 11th Hindi Chapter-2 Meera ke Pad | Question Answer | मीरा के पद प्रश्न-उत्तर | आरोह- Aroh
कक्षा 11वीं हिन्दी
अध्याय- 2
मीरा के पद
(महत्वपूर्ण
प्रश्न उत्तर)
1. मीरा कृष्ण की उपासना किस रूप में करती है? वह रूप कैसा है?
उत्तर:-
मीरा श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मानती हैं। वे स्वयं को उनकी दासी भी मानती है और श्रीकृष्ण की उपासना एक समर्पिता पत्नी के रूप में करती है। मीरा के प्रभु सिर पर मोर मुकुट धारण करने वाले, मन को मोहने वाले रूपवान हैं।
2.1 भाव व शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
अंसुवन जल सींचि-सींचि, प्रेम - वेलि वोयी
अब त वेलि फैलि गई, आणंद-फल होयी
उत्तर:-
भाव-सौंदर्य - ये पंक्तियाँ कृष्णभक्त कवयित्री 'मीरा बाई' द्वारा रचित हैं । इन पंक्तियों में मीरा की भक्ति अपनी चरम सीमा पर है। मीरा ने अपने आँसुओं के जल से सींचकर सींचकर कृष्ण रूपी प्रेम की बेल बोई है और अब उस प्रेम रूपी बेल में फल आने शुरू हो गए हैं अर्थात मीरा को अब आनंदाभूति होने लगी है।
शिल्प-सौंदर्य - भाषा मधुर, संगीतमय और राजस्थान मिश्रित भाषा है। 'सींची-सींची' में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है । 'प्रेम-वेलि वोयी, आणंद- फल, अंसुवन जल' में रूपक अलंकार का बहुत ही कुशलता से प्रयोग किया गया है।
2.2 भाव व शिल्प सौंदर्य स्पष्ट कीजिए-
दूध की मथनियाँ बड़े प्रेम से विलोयी
दधि मथि घृत काढि लियो, डारि दयी छोयी
उत्तर:-
भाव-सौंदर्य - इस पद में मीरा ने भक्ति की महिमा को बहुत ही सुंदर ढंग से प्रस्तुत किया है। इस पद में भक्ति को मक्खन के समान महत्वपूर्ण तथा सांसारिक सुख को छाछ के समान असार माना गया है। वह कहती हैं कि मैंने दूध की मथनियों को बहुत प्रेम से मथा है। इसमें दही को मथकर घी तो निकाल लिया है और छाछ को छोड़ दिया है। इस प्रकार इन काव्य पंक्तियों में मीरा संसार के सार तत्व को ग्रहण करने और व्यर्थ की बातों को छोड़ देने के लिए कहती है ।
शिल्प-सौंदर्य - भाषा मधुर, संगीतमय और राजस्थान मिश्रित भाषा है। पद भक्ति रस से परिपूर्ण है। 'घी' और 'छाछ' शब्द प्रतीकात्मक रूप में लिए गए हैं। 'दूध की मथनियाँ... छोयी' में अन्योक्ति अलंकार
3. लोग मीरा को बावरी क्यों कहते हैं?
उत्तर:-
लोग उन्हें बावरी कहते थे क्योंकि मीरा कृष्ण भक्ति में अपनी सुध-बुध खो चुकी थीं। कृष्ण की भक्ति के लिए उन्होंने राज परिवार को भी त्याग दिया था। उसके इस कृत्य पर लोगों व परिवारवालों ने उसकी भरपूर निंदा की परंतु मीरा तो सब सांसारिकता को त्याग कर कृष्ण की अनन्य भक्ति में रम चुकी थी । मीरा की अनन्य कृष्ण भक्ति की इसी पराकष्ठा को बावलेपन की संज्ञा दी गई है।
4. विस का प्याला राणा भेज्या,
पीवत मीरां हाँसी - इसमें क्या व्यंग्य छिपा है ?
उत्तर:-
मीरा की कृष्ण-भक्ति के कारण उसके पति परेशान रहते थे। उन्हें अपनी कुल की मर्यादा खतरे में मालूम पड़ती थी अतः उन्होंने मीरा को मारने के लिए ज़हर का प्याला भेजा और मीरा ने भी उसे हँसते-हँसते पीलिया परंतु कृष्ण भक्ति के कारण ज़हर मीरा का कुछ न बिगाड़ पाया। इस तरह यहाँ पर विरोधियों पर व्यंग्य किया गया है कि वे कुछ भी क्यों न कर लें, ईश्वर भक्ति करने वालों का बाल भी बाँका नहीं कर सकते हैं।
5. मीरा जगत को देखकर रोती क्यों हैं?
उत्तर:-
मीरा संसार में लोगों को मोह-माया में जकड़े हुए देखकर रोती है। मीरा के अनुसार संसार के सुख-दुःख ये सब मिथ्या हैं। मीरा सांसारिक सुख-दुःख को व्यर्थ मानती है। उसे लगता है कि किस प्रकार लोग सांसारिक मोह-माया को सच मान बैठे हैं और अपने जीवन को व्यर्थ गँवा रहे हैं और इसी कारण वे जगत को देखकर रोती हैं।
6. कल्पना करें, प्रेम प्राप्ति के लिए मीरा को किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा।
उत्तर:- प्रेम-प्राप्ति की राह आसान नहीं होती । मीरा को भी प्रेम-प्राप्ति के लिए अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा होगा जैसे सर्वप्रथम तो उन्हें घर-परिवार का विरोध सहना पड़ा होगा। उन्हें रोकने के अनगिनत प्रयास किए गए होंगे। समाज के लोगों ने भी उस पर टीका-टिप्पणी की हो। यहाँ तक कि उन्हें रोकने के लिए मारने के प्रयास भी किए गए होंगे। कहा जाता है कि यातनाओं से तंग आकर मीरा ने मेवाड़ छोड़ दिया और मथुरा- वृन्दावन की यात्रा करते हुए द्वारका पहुँची और श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गईं।
7. लोक-लाज खोने का अभिप्राय क्या है?
उत्तर:-
'लोक-लाज खोने का अभिप्राय परिवार की मर्यादा खोने से है। हर एक समाज की अपनी एक मर्यादा होती है और जब कोई व्यक्ति इसके विपरीत कार्य करता है तो उसे मर्यादा का उल्लंघन मानकर लोक-लाज खोने की बात की जाती है।
मीरा का विवाह राजपुताना परिवार में हुआ था। राज-परिवार से संबंधित होने के कारण वहाँ महिलाओं को अनेक प्रथाओं का पालन जैसे पर्दा प्रथा का पालन करना, पर-पुरूषों के सामने आना, मंदिरों में जाकर भजन-कीर्तन में शामिल होना आदि अनेक बातों की मनाही थी । मीरा ने परिवार की इन झूठी मर्यादाओं की परवाह न की और कृष्ण की भक्ति, सत्संग भजन, साधु संतों के साथ उठना-बैठना सभी निर्भयपूर्वक जारी रखा। इसी संदर्भ में मीरा के लोक-लाज छोड़ने की बात की गई है।
8. मीरा ने 'सहज मिले अविनासी'
क्यों कहा है?
उत्तर:- मीरा प्रभु
को 'अविनाशी' कहा है। मीरा के अनुसार ऐसे अविनाशी प्रभु को पाने के लिए सच्चे मन से सहज भक्ति करनी पड़ती है। ऐसी सहज भक्ति से भक्त को प्रभु की प्राप्ति अवश्य होती है ।
9. लोग कहै, मीरां भइ बावरी,
न्यात कहै कुल-नासी- मीरा के बारे में लोग (समाज) और न्यात (कुटुंब) की ऐसी धारणाएँ क्यों हैं?
उत्तर:- समाज के लोग सांसारिक मोह-माया को वास्तविकता मानते हैं। उनके लिए धन-संपत्ति, जमीन-जायदाद आदि बातें ही सत्य होती हैं और मीरा का इन सांसारिक सुखों का त्याग करना उनके अनुसार उसे बावली की संज्ञा में ला खड़ा करता है। उसके विपरीत परिवारवालों के अनुसार मीरा ने कुल - मर्यादा की परवाह न करते हुए मंदिरों में नाचना, साधु-संतों के साथ उठना-बैठना आदि कार्यों को जारी रखा अत: वे मीरा के इन कृत्यों को कुल का नाश करने वाला मानते हैं।
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