Class 11th Hindi Chapter-1 Namak Ka Daaroga | नमक का दारोगा ( सारांश ) ( आरोह- Aroh ) Easy Summary In Hindi and Explanation
Class 11th Hindi Chapter-1 Namak Ka Daaroga | नमक का दारोगा ( सारांश ) ( आरोह- Aroh ) Easy Summary In Hindi and Explanation
कक्षा 11वीं हिन्दी
अध्याय- 1
नमक
का दारोगा
सारांश
मुंशी
प्रेमचंद द्वारा लिखित यह कहानी कर्मों का फल में विश्वास दिलाती हुई कहानी है| कहानी में मानव मूल्यों का
आदर्श रूप दिखाया गया है और उसे सम्मानित भी किया गया है| सत्यनिष्ठा,
धर्मनिष्ठा और कर्मपरायणता को विश्व के दुर्लभ गुणों में बताया गया
है| यह कहानी धन के ऊपर धर्म के जीत की है|
कहानी
आजादी से पहले की है| नमक का नया विभाग बना| विभाग में ऊपरी कमाई बहुत
ज्यादा थी| सभी व्यक्ति इस विभाग में काम करने को उत्सुक थे|
उसे दौर में लोग प्रेम की कथाएँ पढ़कर उच्च पदों पर पहुँच जाते थे|
मुंशी
वंशीधर भी महत्वपूर्ण विषय जैसे इतिहास को छोड़ प्रेम गाथाओं का ज्यादा अध्ययन कर
रोजगार की खोज में निकल पड़े| उनके पिता अनुभवी पुरुष थे| उन्होंने समझाया कि घर
की दुर्दशा के अनुसार नौकरी करना चाहिए| वे बताते हैं कि
प्रतिष्ठा के आधार पदों का चुनाव ना करे बल्कि उस पद को चुने जिसमें ऊपरी कमाई हो|
मासिक वेतन के बारे में वे कहते हैं कि महीने की शुरुआत में ही खत्म
होनी शुरू हो जाती है| ऊपरी आय को वह ऐसा स्त्रोत बताते हैं
जो हर वक़्त आती है| महीने की कमाई को वह मनुष्य की देन तो
वहीं ऊपरी कमाई को वह ईश्वर की देन बताते हैं|
वंशीधर
पिता से आशीर्वाद लेकर नौकरी की तलाश में निकल जाते हैं| भाग्य से नमक विभाग के दारोग पद
की नौकरी मिली जाती है जिसमें वेतन अच्छा था साथ ही ऊपरी कमाई भी ज्यादा थी|
यह खबर जब पिता को पता चली तो वह बहुत खुश हुए|
मुंशी
वंशीधर ने छः महीने में अपनी कार्यकुशलता और अच्छे आचरण से सभी अफ़सरों को मोहित कर
लिया था| जाड़े के समय एक रात वंशीधर
अपने दफ़्तर में सो रहे थे| उनके दफ़्तर से एक मील पहले जमुना
नदी थी जिसपर नावों का पुल बना हुआ था| वंशीधर सो रहे थे|
गाड़ियों की आवाज़ और मल्लाहों की कोलाहल से उनकी नींद खुली| बंदूक जेब में रखा और घोड़े पर बैठकर पुल पर पहुँचे वहाँ गाड़ियों की एक
लंबी कतार पुल पार कर रही थीं| उन्होंने पूछा किसकी गाड़ियाँ
हैं तो पता चला, पंडित अलोपीदीन की हैं|
मुंशी
वंशीधर चौंक पड़े| पंडित अलोपीदीन इलाके के सबसे प्रतिष्ठित जमींदार थे| लाखों रुपयों का व्यापार था| वंशीधर ने जब जाँच किया
तब पता चला कि गाड़ियों में नमक के ढेले के बोरे हैं| उन्होंने
गाड़ियाँ रोक लीं|
पंडितजी
को यह बात पता चली तो वह अपने धन पर विश्वास किए वंशीधर के पास पहुँचे और उनसे
गाड़ियों के रोकने के बारे में पूछा| पंडितजी ने वंशीधर को रिश्वत देकर गाड़ियों को छोड़ने को कहा
परन्तु वंशीधर अपने कर्तव्य पर अडिग रहे और पंडितजी को गिरफ़्तार करने का हुक्म दे
दिया| पंडितजी आश्चर्यचकित रह गए| पंडितजी
ने रिश्वत को बढ़ाया भी परन्तु वंशीधर नहीं माने और पंडितजी को गिरफ्तार कर लिया
गया|
अगले
दिन यह खबर हर तरफ फैली गयी| पंडित अलोपीदीन के हाथों में हथकड़ियाँ डालकर अदालत में लाया गया| हृदय में ग्लानि और क्षोभ और लज्जा से उनकी गर्दन झुकी हुई थी| सभी लोग चकित थे कि पंडितजी कानून की पकड़ में कैसे आ गए| सारे वकील और गवाह पंडितजी के पक्ष में थे, वंशीधर
के पास केवल सत्य का बल था| न्याय की अदालत में पक्षपात चल
रहा था| मुकदमा तुरंत समाप्त हो गया| पंडित
अलोपीदीन को सबूत के अभाव में रिहा कर दिया गया| वंशीधर के
उद्दंडता और विचारहीनता के बर्ताव पर अदालत ने दुःख जताया जिसके कारण एक अच्छे
व्यक्ति को कष्ट झेलना पड़ा| भविष्य में उसे अधिक होशियार
रहने को कहा गया|
पंडित
अलोपीदीन मुस्कराते हुए बाहर निकले| रुपये बाँटे गए| वंशीधर को
व्यंग्यबाणों को सहना पड़ा| एक सप्ताह के अंदर कर्तव्यनिष्ठा
का दंड मिला और नौकरी से हटा दिया गया| पराजित हृदय, शोक और खेद से व्यथित अपने घर की ओर चल पड़े| घर
पहुँचे तो पिताजी ने कड़वीं बातें सुनाई| वृद्धा माता को भी
दुःख हुआ| पत्नी ने कई दिनों तक सीधे मुँह तक बात नहीं की|
एक
सप्ताह बीत गया| संध्या
का समय था| वंशीधर के पिता राम-नाम की माला जप रहे थे|
तभी वहाँ एक सजा हुआ एक रथ आकर रुका| पिता ने
देखा पंडित अलोपीदीन हैं| झुककर उन्हें दंडवत किया और
चापलूसी भरी बातें करने लगे, साथ ही अपने बेटे को कोसा भी|
पंडितजी ने बताया कि उन्होंने कई रईसों और अधिकारियों को देखा और
सबको अपने धनबल का गुलाम बनाया| ऐसा पहली बार हुआ जब कोई
व्यक्ति ने अपनी कर्तव्यनिष्ठा द्वारा उन्हें हराया हो|
वंशीधर
ने जब पंडितजी को देखा तो स्वाभिमान सहित उनका सत्कार किया| उन्हें लगा की पंडितजी उन्हें
लज्जित करने आए हैं| परन्तु पंडितजी की बातें सुनकर उनके मन
का मैल मिट गया और पंडितजी की बातों को उनकी उदारता बताया| उन्होंने
कहा पंडितजी को कहा कि उनका जो हुक्म होगा वे करने को तैयार हैं| इस बात पर पंडितजी ने स्टाम्प लगा हुआ एक पत्र निकला और उसे प्रार्थना
स्वीकार करने को बोला| वंशीधर ने जब कागज़ पढ़ा तो उसमें
पंडितजी ने वंशीधर को अपनी सारी जायदाद का स्थायी मैनेजर नियुक्त किया था| कृतज्ञता से वंशीधर की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने कहा कि वे इस पद
के योग्य नहीं हैं| इसपर
पंडितजी ने मुस्कराते हुए कहा कि उन्हें अयोग्य व्यक्ति ही चाहिए| वंशीधर ने कहा कि उनमें इतनी बुद्धि नहीं की वह यह कार्य कर सकें| पंडितजी ने वंशीधर को कलम देते हुए कहा कि उन्हें विद्यवान नहीं चाहिए
बल्कि धर्मनिष्ठित व्यक्ति चाहिए|
वंशीधर
ने काँपते हुए मैनेजरी की कागज़ पर दस्तखत कर दिए| पंडित अलोपीदीन ने वंशीधर को ख़ुशी से गले
लगा लिया
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