कबीरदास जी का कवि परिचय | Kabir Das ka kavi parichay in hindi | रचनाएं और भाव पक्ष कला पक्ष 11th hindi
कबीरदास जी का कवि परिचय | Kabir Das ka kavi parichay in hindi | रचनाएं और भाव पक्ष कला पक्ष
नमस्कार दोस्तों हमारे वेबसाइट anuragasaticlasses.com पर आपका स्वागत है आज हम इस पोस्ट के माध्यम से Kabir Das जी का कवि परिचय देखेंगे जिसमें हम चर्चा करेंगे इनकी रचनाएं , भाव पक्ष, कला पक्ष और साहित्य में स्थान । परीक्षा की दृष्टि से कबीरदास जी का कवि परिचय बहुत ही महत्वपूर्ण है। Kabir Das जी का कवि परिचय बहुत ही आसान भाषा में लिखा गया है जो कि आपको एक बार में ही याद हो जाएगा। आप इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा अपने दोस्तों में शेयर करें ताकि उनको भी इस पोस्ट के माध्यम से लाभ प्राप्त हो सके।
कक्षा 11वीं हिन्दी
कवि
परिचय
कबीर दास
रचनाएं – 1.
साखी 2. सबद 3. रमैनी
भाव पक्ष –
(1.)
निर्गुण ब्रह्म की उपासना:- कबीर
निर्गुण ब्रह्मा के उपासक थे । उनका उपवास, अरुण,
अमान, अनुपम सूक्ष्मतत्व है । इसे बे राम नाम
से पुकारते हैं, कबीर के 'राम निर्गुण'
निराकार परब्रह्मा है |
(2.)
प्रेम भावना और भक्ति:- कबीर ने ज्ञान को महत्व
दिया । उनकी कविता में स्थान स्थान पर प्रेम और भक्ति की उत्कृष्ट भावना परिलक्षित
होती है। उनका कहना है "यह तो घर है प्रेम का खाला का घर नहीं है " और
ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय !" इत्यादि !
(3.)
रहस्य भावना :- परमात्मा से विविध संबंध जोड़ कर
अंत में ब्रह्मा में लीन हो जाने की भाव अपनी कविता में कबीर ने व्यक्त किए हैं ||
(4.) समाज सुधार और नीति उपदेश :- सामाजिक जीवन में फैली बुराइयों को मिटाने के लिए कबीर की वाणी करकस को उठी । कबीर ने समाज गत बुराइयों का खंडन तो किया ही साथ - साथ आदर्श जीवन के लिए नीति पूर्ण उपदेश भी दिया । कबीर के काव्य में इस्लाम के योग साधना, अहिंसा, सूफियों की प्रेम साधना आदि का समावेश दिखाई देता है !!
कला पक्ष –
(1.)
आकृतिम भाषा :- कबीर की भाषा अपरिष्कृत है । उसमें
कृतिमता का अंश भी नहीं है । स्थानी बोलचाल के शब्दों की प्रधानता दिखाई देती है ।
उसमें पंजाबी, राजस्थानी, उर्दू,
फारसी, आदि भाषाओं के शब्दों का विकृत रूप
प्रयोग किया गया है । इससे भाषा में विविध चित्र आ गई है कबीर की भाषा में भाव
प्रकट करने में समर्थ विद्यमान है । इसकी भाषा में पंचमेल खिचड़ी अथवा शुद्ध कड़ी
भी कहा जाता है |
(2.) सहज
शैली :- कबीर ने सहज सरल व सरस शैली में अपने
उपदेश दिए हैं ! भाव प्रकट करने के दृष्टि से कबीर की भाषा पूर्णता: सक्षम है । कब
में विरोधाभास दुर्बलता एवं व्यंगात्मकता विद्यमान है
(3.)
अलंकार :- कबीर के काव्य में स्वभावत: तथा
अलंकारिकता आ गई है । उपमा, रूपक संगरूपक, अन्योक्ति, उत्प्रेक्षा, विरोधाभास
आदि अलंकारों की प्रचुरता है |
(4.) छंद
:- कबीर के साखियो में दोहा छंद का प्रयोग हुआ है । सबद
पद है तथा रमैनी चौपाई छंद दो से मिलते हैं " कहरवा "छंद में उनकी
रचनाएं में मिलता है। इन शब्दों का प्रयोग संदेश का है ||
(5.) रस :-
इनके काव्य में शांत रस की प्रधानता है
आत्मा परमात्मा के मिलन का श्रंगार ही शांत रस बन गया है ।
साहित्य में स्थान–
कबीर समाज सुधारक एवं युग निर्माता के रूप में सदैव संस्मरण किए जाएंगे । उनके काव्य में निहित संदेश और उपदेश के आधार पर नवीन संभावित समाज की संरचना संभव है ।। डॉक्टर द्वारका प्रसाद सक्सेना ने लिखा है:- " कबीर एक उच्च कोटि के साधक, सत्य के उपासक और ज्ञान के अन्वेषक थे ! उनका समस्त सहित एवं जीवन मुक्त संत गुण एवं गंभीर अनुभवों का भंडार है "
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