Anurag Asati Classes

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Class 11 History Chapter 4 तीन वर्ग | Three Orders | Teen Varg Notes In Hindi

Class 11 History Chapter 4 तीन वर्ग | Three Orders | Teen Varg Notes In Hindi 

Class 11 History Chapter 4 तीन वर्ग | Three Orders | Teen Varg Notes In Hindi

  कक्षा 11वीं इतिहास
         अध्याय- 4
         तीन वर्ग

 तीन वर्ग

  1.  पादरी              
  2. अभिजात            
  3. कृषक

तीन वर्ग अध्याय में, हम 9 वीं और 16 वीं सदी के बीच पश्चिमी यूरोप में होने वाले सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक परिवर्तनों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे ।

रोमन साम्राज्य के पतन के बाद पूर्वी एवं मध्य यूरोप के अनेक जर्मन मूल के समूहों ने इटली, स्पेन और फ्रांस के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया था।

इस समय कोई भी मजबूत संगठित राजनीतिक बल के नहीं था

जिस कारण यहाँ आए दिन युद्ध होते रहते थे

ऐसे में अपनी जमीन की रक्षा के लिए संसाधन जुटाना बहुत जरूरी हो गया था।

इस तरह सामाजिक ढाँचे का केंद्र-बिंदु भूमि पर नियंत्रण था।

चौथी सदी से रोमन साम्राज्य का राजकीय धर्म, ईसाई धर्म था

यह रोमन साम्राज्य के पतन के बाद भी बचा रहा

और धीरे-धीरे मध्य और उत्तरी यूरोप में फैल गया।

चर्च भी यूरोप में एक मुख्य भूमिधारक और राजनीतिक शक्ति बन गया था।

इस अध्याय का केंद्र बिंदु तीन वर्ग हैं,

यह तीनों वर्ग - तीन सामाजिक श्रेणियों है:

1) ईसाई पादरी 2) भूमिधारक अभिजात वर्ग 3) कृषक वर्ग ।

इन तीन वर्गों के बीच बदलते संबंध कई सदियों तक यूरोप के इतिहास को गढ़ने वाले महत्त्वपूर्ण कारक थे।

'सामंतवाद' (feudalism) शब्द जर्मन भाषा के 'फ़्यूड' शब्द से बना है

जिसका अर्थ होता है - एक भूमि का टुकड़ा है

यह एक ऐसे समाज को इंगित करता है जो मध्य फ्रांस और बाद में इंग्लैंड और दक्षिणी इटली में भी विकसित हुआ।

इतिहासकारों ने 'सामंतवाद' (fuedalism) शब्द का प्रयोग

मध्यकालीन यूरोप के आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और विधिक

संबंधों का वर्णन करने के लिए किया है।

यदि हम आर्थिक संदर्भ में, सामंतवाद को देखें तो

यह कृषि उत्पादन को इंगित करता है

जो सामंत (Lord) और कृषकों (peasents) के संबंधों पर आधारित है।

कृषक (किसान), अपने खेतों में तो काम करते ही थे साथ-साथ लॉर्ड के खेतों पर कार्य करते थे।

कृषक लॉर्ड को श्रम सेवा प्रदान करते थे और बदले में वे उन्हें सैनिक सुरक्षा देते थे।

इसके साथ-साथ लॉर्ड के किसानों पर व्यापक न्यायिक अधिकार भी थे।

इसलिए सामंतवाद ने जीवन के न केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक और राजनीतिक पहलुओं पर भी अधिकार कर लिया।


फ़्रांस और इंग्लैंड

गॉल कैसे फ्रांस बना ?

गॉल (Gaul) प्रांत, रोमन साम्राज्य का एक प्रांत था,

गॉल प्रांत में पर्वत - श्रेणियाँ, नदियाँ, वन और कृषि करने के लिए विस्तृत मैदान थे।

जर्मनी की एक जनजाति फ्रैंक (Franks) ने गॉल को अपना नाम देकर उसे फ्रांस बना दिया। छठी सदी से इस प्रदेश में फ्रैंकिश अथवा फ्रांस के ईसाई राजाओं का शासन था।

फ्रांसीसियों के चर्च के साथ गहरे संबंध थे

पोप ने राजा शॉर्लमेन को पवित्र रोमन सम्राट की उपाधि दी थी

और राजा शॉर्लमेन ने पॉप को समर्थन दिया था जिससे इनके सम्बन्ध अधिक मजबूत हो गए।

पहला वर्ग पादरी वर्ग

फ्रांसीसी पादरी इस अवधारणा को मानते थे

कि हर व्यक्ति कार्य के आधार पर तीनों वर्गों में से किसी एक वर्ग का सदस्य होता है।

एक बिशप ने कहा

"यहाँ वर्ग क्रम में कुछ प्रार्थना करते हैं, दूसरे लड़ते हैं और शेष अन्य कार्य करते हैं।" इस तरह समाज मुख्य रूप से तीन वर्ग पादरी, अभिजात और कृषक वर्ग से बना था।

कैथोलिक चर्च के अपने नियम होते थे

चर्च को, राजा ने जमीन दे रखी थी इस भूमि से वे कर इकट्ठा कर सकते थे। इसलिए चर्च एक शक्तिशाली संस्था थी जो राजा पर निर्भर नहीं थी ।

पश्चिमी चर्च के अध्यक्ष पोप थे, जो रोम में रहते थे।

यूरोप में ईसाई समाज का मार्गदर्शन बिशपों तथा पादरियों द्वारा किया जाता था

अधिकतर गाँवों में अपने चर्च हुआ करते थे जहाँ पर प्रत्येक रविवार को लोग पादरी के धर्मोपदेश सुनने तथा सामूहिक प्रार्थना करने के लिए इकट्ठा होते थे।

हर व्यक्ति पादरी नहीं बन सकता था

यदि कोई पुरुष पादरी बनना चाहे तो वह शादी नहीं कर सकता था ।

धर्म के क्षेत्र में बिशप अभिजात माने जाते थे।

बिशपों के पास भी लॉर्ड की तरह विस्तृत जागीरें थी और वे शानदार महलों में रहते थे।

चर्च को एक वर्ष के अंतराल में कृषक से उसकी उपज का दसवाँ भाग लेने का अधिकार था जिसे 'टीथ' (Tithe ) कहते थे।

चर्च के औपचारिक रीति-रिवाज की कुछ महत्त्वपूर्ण रस्में,

सामंती कुलीनों की नकल थीं।

प्रार्थना करते वक्त हाथ जोड़कर और सिर झुकाकर घुटनों के बल झुकना,

नाइट द्वारा अपने वरिष्ठ लॉर्ड के प्रति वफादारी को शपथ लेते वक्त अपनाए गए तरीके की

नकल था।

इसी प्रकार ईश्वर के लिए लॉर्ड शब्द का प्रचलन एक उदाहरण था

जिसके द्वारा सामंती संस्कृति चर्च के उपासना कक्षों में प्रवेश करने लगी।

इस प्रकार अनेक सांस्कृतिक सामंती रीति-रिवाजों और तौर-तरीकों को चर्च की दुनिया में अपना लिया गया था।

दूसरा वर्ग अभिजात वर्ग -

पादरियों ने स्वयं को प्रथम वर्ग में तथा अभिजात वर्ग को दूसरे वर्ग में रखा था।

लेकिन वास्तव में, सामाजिक प्रक्रिया में अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। अभिजात वर्ग की महत्त्वपूर्ण भूमिका होने का कारण, उनका भूमि पर नियंत्रण था। यह वैसलेज (Vassalage) नामक एक प्रथा के विकास के कारण हुआ। फ्रांस के शासकों का लोगों से जुड़ाव एक प्रथा के कारण था जिसे 'वैसलेज' कहते थे यह प्रथा जर्मन मूल के लोगों, जिनमें फ्रैंक लोग भी थे, में समान रूप से विद्यमान थी।

बड़े भू-स्वामी और अभिजात वर्ग यह दोनों ही राजा के अधीन होते थे जबकि कृषक भू-स्वामियों के अधीन होते थे।

अभिजात वर्ग राजा को अपना स्वामी (Senior) मान लेता था और वे आपस में वचनबद्ध होते थे

सेन्योर / लॉर्ड, दास (Vassal) की रक्षा करता था और बदले में वह उसके प्रति निष्ठावान रहता

था।

इन संबंधों में व्यापक रीति-रिवाजों और शपथों का विनिमय शामिल था

जो कि चर्च में बाईबल की शपथ लेकर की जाती थी। इस समारोह में दास (vassal) को उस भूमि के प्रतीक के रूप में, जो कि उसके मालिक द्वारा एक लिखित अधिकार पत्र या एक छड़ी (staff) या केवल एक मिट्टी का डला दिया जाता था।

अभिजात वर्ग की समाज में एक विशेष हैसियत होती थी

उनका अपनी संपदा पर स्थायी तौर पर पूर्ण नियंत्रण था।

वह अपनी सैन्य क्षमता बढ़ा सकते थे (जो सामंती सेना, feudal levies, कहलाती थी।

वे अपना स्वयं का न्यायालय लगा सकते थे और यहाँ तक कि अपनी मुद्रा भी प्रचलित कर सकते थे।

वे अपनी भूमि पर बसे सभी व्यक्तियों के मालिक थे।

वे विस्तृत क्षेत्रों के स्वामी थे जिसमें उनके घर, उनके निजी खेत, जोत व चरागाह और उनके असामी कृषकों (Tenant-peasant) के घर और खेत होते थे।

उनका घर 'मेनर' कहलाता था।

उनकी व्यक्तिगत भूमि कृषकों द्वारा जोती जाती थी

इनको जरूरत पड़ने पर युद्ध के समय पैदल सैनिकों के रूप में कार्य करना पड़ता था

और साथ ही साथ अपने खेतों पर भी काम करता पड़ता था।

लॉर्ड के पास अपना मेनर - भवन होता था। वह गाँवों पर नियंत्रण रखता

कई लॉर्ड तो अनेकों गांवों के मालिक होते थे

किसी छोटे मेनर की जागीर में दर्जन भर और बड़ी जागीर में 50 या 60 परिवार हो सकते थे।

रोजाना के उपभोग में काम आने वाली सभी वस्तु जागीर पर मिलती थी

अनाज खेतों में उगाये जाते थे, लोहार और बढ़ई लॉर्ड के औज़ारों की देखभाल तथा हथियारों की मरम्मत करते थे,

जबकि राजमिस्त्री उनकी इमारतों की देखभाल करते थे।

औरतें वस्त्र बनाती थीं और बच्चे लॉर्ड की मदिरा सम्पीडक में कार्य करते थे।

जागीरों में बड़े और घने जंगल होते थे जहाँ लॉर्ड शिकार करते थे

यहाँ चरागाह होते थे जहाँ उनके पशु और घोड़े चरते थे।

वहाँ पर एक चर्च और सुरक्षा के लिए दुर्ग होता था

तेरहवीं सदी से कुछ दुर्ग को बड़ा बनाया जाने लगा और यह नाइट (knight) के परिवार का निवास स्थान बन सकें।

इंग्लैंड में नॉरमन विजय से पहले दुर्गों की कोई जानकारी नहीं थी और इनका विकास सामंत प्रथा के तहत राजनीतिक प्रशासन और सैनिक शक्ति के केंद्रों के रूप में हुआ था।

मेनर कभी भी आत्मनिर्भर नहीं हो सकते थे क्योंकि उन्हें नमक, चक्की का पाट और धातु के बर्तन बाहर के स्रोतों से प्राप्त करने पड़ते थे।

ऐसे लॉर्ड जो विलासी जीवन बिताना चाहते थे और मँहगे साजो-सामान, वाद्य यंत्र और आभूषण खरीदना चाहते थे जो स्थानीय जगहों पर उपलब्ध नहीं होते थे.

ऐसी चीजों को इन्हें दूसरे स्थानों से प्राप्त करना पड़ता था।

यूरोप में, नौवीं सदी से ज्यादातर स्थानीय युद्ध होते रहते थे।

इन युद्ध के लिए कृषक सैनिक काफी नहीं थे इसलिए कुशल अश्वसेना की जरूरत थी।

कुशल अश्वसेना की जरूरत ने ही एक नए वर्ग को बढ़ावा दिया जो नाइट्स (Knights) कहलाते थे।

वे लॉर्ड से उसी प्रकार सम्बद्ध थे जिस प्रकार लॉर्ड राजा से सम्बद्ध था।

लॉर्ड ने नाइट को भूमि का एक भाग (जिसे फ़ीफ़ कहा गया) दिया और उसकी रक्षा करने का वचन दिया।

फ़ीफ़ (fief) को उत्तराधिकार में पाया जा सकता था।

यह 1000-2000 एकड़ या उससे अधिक हो सकती थी जिसमें नाइट और उसके परिवार के लिए एक पनचक्की और मदिरा संपीडक के अतिरिक्त, उसके व उसके परिवार के लिए घर, चर्च और उस पर निर्भर व्यक्तियों के रहने की व्यवस्था शामिल थी।

सामंती मेनर (feudal manor) की तरह फ़ीफ़ की भूमि को कृषक जोतते थे।

बदले में, नाइट अपने लॉर्ड को एक निश्चित रकम देता था और युद्ध में उसकी तरफ से लड़ने का वचन देता था ।

अपनी सैन्य योग्यताओं को बनाए रखने के लिए,

नाइट प्रतिदिन अपना समय बाड़ बनाने / घेराबंदी करने और पुतलों से रणकौशल एवं अपने बचाव का अभ्यास करने में निकालते थे।

नाइट अपनी सेवाएँ दुसरा लॉर्ड को भी दे सकता था पर उसकी सर्वप्रथम निष्ठा अपने लॉर्ड के लिए ही होती थी।

बारहवीं सदी से गायक फ्रांस के मेनरों में वीर राजाओं और नाइट्स की वीरता की कहानियाँ, गीतों के रूप में सुनाते हुए घूमते रहते थे जो अंशतः ऐतिहासिक और अंशतः काल्पनिक होती थीं।

उस काल में जब बहुत अधिक संख्या में पढ़े-लिखे लोग नहीं थे और पांडुलिपियाँ भी अधिक नहीं थीं. ये घुमक्कड़ चारण बहुत प्रसिद्ध थे।

चर्च के अलावा कुछ विशेष श्रद्धालु ईसाइयों की एक दूसरी तरह की संस्था थी।

कुछ अत्यधिक धार्मिक व्यक्ति, पादरियों के विपरीत जो लोगों के बीच में नगरों और गाँवों में रहते थे, एकांत जिंदगी जीना पसंद करते थे।

वे धार्मिक समुदायों में रहते थे जिन्हें ऐबी (Abbeys) या मोनेस्ट्री* (monastery) मठ कहते थे और जो अधिकतर मनुष्य की आम आबादी से बहुत दूर होते थे।

दो सबसे अधिक प्रसिद्ध मठों में एक मठ 529 में इटली में स्थापित सेंट बेनेडिक्ट (St. Benedict) था और दूसरा 910 में बरगंडी (Burgundy) में स्थापित क्लूनी (Cluny) था।

भिक्षु अपना सारा जीवन और समय प्रार्थना करने, अध्ययन और कृषि में लगाने का व्रत लेता था ।

पादरी कार्य के विपरीत भिक्षु की जिंदगी पुरुष और स्वियों दोनों ही अपना सकते थे

ऐसे पुरुषों को मॉक (Monk) तथा स्त्रियाँ नन (Nun) कहलाती थी।

कुछ आंबों को छोड़कर ज्यादात्तर में एक ही लिंग के व्यक्ति रह सकते थे। पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग- अलग आँबे थे। पादरियों को तरह भिक्षु और भिक्षुणियाँ भी विवाह नहीं कर सकती थे।

तेरहवीं सदी से भिक्षुओं के कुछ समूह जिन्हें फ्रायर (friars) कहते थे

उन्होंने मठ में न रहने का निर्णय लिया।

वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूम-घूम कर लोगों को उपदेश देते और दान से अपनी जीविका चलाते थे।

चर्च और समाज

यूरोप वासी ईसाई बन गए थे लेकिन अभी भी कुछ हद तक चमत्कार और रीति-रिवाजों से जुड़े अपने पुराने विश्वास को नहीं छोड़ा था।

चौथी सदी से ही क्रिसमस और ईस्टर कैलेंडर की महत्त्वपूर्ण तिथियाँ बन गए 25 दिसम्बर को मनाए जाने वाले ईसा मसीह के जन्मदिन ने एक पुराने पूर्व- रोमन त्योहार का स्थान ले लिया।

ईस्टर ईसा के शूलारोपण और उनके पुनर्जीवित होने का प्रतीक था।

काम से दबे कृषक इन पवित्र दिनों / छुट्टियों (Holy days / Holidays) का स्वागत इसलिए करते थे क्योंकि इन दिनों उन्हें कोई काम नहीं करना पड़ता था।

वैसे तो यह दिन प्रार्थना करने के लिए था परन्तु लोग सामान्यतः इसका अधिकतर समय मौज-मस्ती करने और दावतों में बिताते थे।

तीर्थयात्रा, ईसाइयों के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा थी, और बहुत से लोग शहीदों की समाधियों या बड़े गिरजाघरों की लंबी यात्राओं पर जाते थे।


तीसरा वर्ग - किसान

स्वतंत्र और बंधक

किसान वर्ग तीसरा वर्ग था

यह एक विशाल समूह था जो पहले दो वर्गों का भरण-पोषण करते थे

कृषक दो प्रकार के थे

1) स्वतंत्र किसान

2) दास (कृषि दास)

पुरुषों का सैनिक सेवा में योगदान आवश्यक होता था (वर्ष में कम से कम चालीस दिन) ।

कृषकों के परिवारों को लॉर्ड की जागीरों पर जाकर काम करने के लिए सप्ताह के तीन या उससे अधिक कुछ दिन निश्चित करने पड़ते थे।

इस श्रम से होने वाला उत्पादन जिसे 'श्रम - अधिशेष' (Labourrent) कहते थे, सीधे लॉर्ड के पास जाता था।

इसके अलावा उनसे अन्य श्रम कार्य

जैसे - गड्ढे खोदना, जलाने के लिए लकड़ियाँ इकट्ठी करना, बाड़ बनाना और सड़कें व इमारतों की मरम्मत करने की भी उम्मीद की जाती थी और इनके लिए उन्हें कोई मज़दूरी नहीं मिलती थी।

खेतों में मदद करने के अतिरिक्त, स्त्रियों व बच्चों को अन्य कार्य भी करने पड़ते थे।

वे सूत काते, कपड़ा बुनते मोमबत्ती बनाते और लॉर्ड के उपयोग हेतु अंगूरों से रस निकाल कर मदिरा तैयार करते थे।

इसके साथ ही एक प्रत्यक्ष कर 'टैली' (Tallle) था जिसे राजा कृषकों पर कभी-कभी लगाते थे (पादरी और अभिजात वर्ग इस कर से मुक्त थे) ।

कृषिदास अपने गुजारे के लिए लॉई की भूमि पर कृषि करते थे इसलिए उनकी अधिकतर उपज भी लॉर्ड को ही मिलती थी।

वे उन भूखंडों पर भी कृषि करते थे जो केवल लॉर्ड के स्वामित्व में थी ।

इसके लिए उन्हें कोई मजदूरी नहीं मिलती थी और ये लॉर्ड की आज्ञा के बिना जागीर नहीं छोड़ सकते थे।

कृषि दासों (सर्फ) केवल अपने लॉर्ड की चक्की में ही आटा पीस सकते थे.

उनके तंदूर में ही रोटी सेंक सकते थे और उनकी मदिरा संपीडक में ही मंदिरा और बीयर तैयार कर सकते थे।

लॉर्ड यह तय कर सकता था कि कृषिदास को किसके साथ विवाह करना चाहिए या फिर कृषिदास की पसंद को हो अपना आशीर्वाद दे सकता था

इंग्लैंड

सामंतवाद का विकास इंग्लैंड में ग्याहरवीं सदी से हुआ।

छठी सदी में मध्य यूरोप से एंजिल (Angles) और सैक्सन ( Saxons) इंग्लैंड में आकर बस गए।

| इंग्लैंड देश का नाम 'एंजिल लैंड' का रूपांतरण है।

ग्याहरवीं सदी में नारमैडी (Normandy) के ड्यूक विलियम ने एक सेना के साथ इंग्लिश | चैनल (English channel) को पार कर इंग्लैंड के सैक्सन राजा को हरा दिया।

इस समय, फ्रांस और इंग्लैंड में क्षेत्रीय सीमाओं और व्यापार से उत्पन्न होने वाले विवादों के कारण प्रायः युद्ध होते रहते थे।

विलियम प्रथम ने भूमि नपवाई और उसके नक्शे बनवाए और उसे अपने साथ आए 180 नॉरमन अभिजातों में बाँट दिए ।

सामाजिक, आर्थिक सम्बन्ध को प्रभावित करने वाले

कारक

1. पर्यावरण

2. भूमि का उपयोग

3. नयी कृषि प्रोद्योगिकी

पर्यावरण-

पाँचवीं से दसवीं सदी तक यूरोप का अधिकांश भाग विस्तृत वनों से घिरा हुआ था। अतः कृषि के लिए उपलब्ध भूमि सीमित थी।

कृषक अत्याचार से बचने के लिए वहाँ से भाग कर वनों में शरण ले सकते थे।

इस समय यूरोप में तीव्र ठंड का दौर चल रहा था। इससे सर्दियाँ प्रचंड और लंबी अवधि की हो गईं। फसलों का उपज काल छोटा हो गया और इसके कारण कृषि की पैदावार कम हो गई।

ग्यारहवीं सदी से यूरोप में एक गर्माहट का दौर शुरू हो गया और औसत तापमान बढ़ गया जिससे कृषि पर अच्छा प्रभाव पड़ा। कृषकों को कृषि के लिए अब लंबी अवधि मिलने लगी।

मिट्टी पर पाले का असर कम होने के कारण आसानी से खेती की जा सकती थी।

यूरोप के अनेक भागों के वन क्षेत्रों में उल्लेखनीय कमी हुई फलस्वरूप कृषि भूमि का विस्तार हुआ।

भूमि का उपयोग

शुरुआत में, कृषि प्रौद्योगिकी बहुत आदिम किस्म थी।

यांत्रिक मदद के रूप में किसान के पास केवल बैलों की जोड़ी से चलने वाला लकड़ी का हल था।

यह हल केवल पृथ्वी की सतह को खुरच ही सकता था।

यह भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता को पूरी तरह से बाहर निकाल पाने में असमर्थ था ।

इसलिए कृषि में अत्यधिक परिश्रम करना पड़ता था।

भूमि को प्रायः चार वर्ष में एक बार हाथ से खोदा जाता था और उसमें अत्यधिक मानव श्रम की आवश्यकता होती

साथ ही फ़सल चक्र के एक प्रभावहीन तरीके का उपयोग हो रहा था। भूमि को दो भागों में बाँट दिया जाता था

एक भाग में शरद ऋतु में गेहूं बोया जाता था जबकि दुसरे भूमि को खाली रखा जाता था अगले वर्ष इस भूमि पर राई बोई जाती थी

इस व्यवस्था के कारण, मिट्टी की उर्वरता का हास होने लगा और प्राय: अकाल पड़ने लगे। दीर्घकालिक कुपोषण और विनाशकारी अकाल बारी-बारी से पड़ने लगे

जिससे गरीबों के लिए जीवन अत्यंत दुष्कर हो गया।


नयी कृषि प्रोद्योगिकी

ग्याहरवीं सदी तक विभिन्न प्रौद्योगिकियों में बदलाव के प्रमाण मिलते हैं।

मूल रूप से लकड़ी से बने हल के स्थान पर लोहे की भारी नोंक वाले हल और साँचेदार पटरे (Mould boards) का उपयोग होने लगा।

ऐसे हल अधिक गहरा खोद सकते थे और साँचेदार पटरे सही ढंग से उपरि मृदा को पलट सकते थे।

इसके फलस्वरूप भूमि में व्याप्त पौष्टिक तत्वों का बेहतर उपयोग होने लगा।

पशुओं को हलों में जोतने के तरीकों में सुधार हुआ। गले (Neck harness) के स्थान पर जुआ अब कंधे पर बाँधा जाने लगा।

इससे पशुओं को अधिक शक्ति मिलने लगी । घोड़े के खुरों पर अब लोहे की नाल लगाई जाने लगी जिससे उनके खुर सुरक्षित हो गए।


कृषि के लिए वायु और जल शक्ति का उपयोग होने लगा।

यूरोप में अन्न को पीसने और अंगूरों को निचोड़ने के लिए अधिक जलशक्ति और वायुशक्ति से चलने वाले कारखाने स्थापित हो रहे थे।

भूमि के उपयोग के तरीके में भी बदलाव आया।

सबसे क्रांतिकारी था दो खेतों वाली व्यवस्था से तीन खेतों वाली व्यवस्था में परिवर्तन।

इस व्यवस्था में कृषक तीन वर्षों में से दो वर्ष अपने खेत का उपयोग कर सकता था बशर्ते वह एक फसल शरद ऋतु में और उसके डेढ़ वर्ष पश्चात दूसरी बसंत में बोता ।

इसका अर्थ था कि कृषक अपनी जोतों को तीन खेतों में बाँट सकते थे।

वे मानव उपभोग के लिए एक खेत में शरत ऋतु में गेहूँ या राई बो सकते थे।

दूसरे में, बसंत ऋतु में मटर, सेम और मसूर तथा घोड़ों के लिए जौ और बाजरा बो सकते थे,

तीसरा खेत परती यानि खाली रखा जाता था। प्रत्येक वर्ष वे तीनों खेतों का प्रयोग बदल बदल कर करते थे।

इन सुधारों के कारण, उत्पादन में तेजी से बढ़ोतरी हुई।

भोजन की उपलब्धता दुगुनी हो गई।

मटर और सेम जैसे पौधों का अधिक उपयोग एक औसत यूरोपीय के आहार में अधिक प्रोटीन का तथा उनके पशुओं के लिए अच्छे चारे का स्रोत बन गया।

फलस्वरूप कृषकों को बेहतर अवसर मिलने लगा।

वे अब कम भूमि पर अधिक भोजन का उत्पादन करने लगे

तेरहवीं सदी तक एक किसान के खेत का औसत आकार सौ एकड़ से घटकर बीस से तीस एकड़ तक रह गया।

छोटी जोतों पर अधिक कुशलता से कृषि की जा सकती थी और उसमें कम श्रम की आवश्यकता थी।

इससे कृषकों को अन्य गतिविधियों के लिए समय मिला।

इनमें से कुछ प्रौद्योगिकी बदलावों में अत्यधिक धन लगता था।

कृषकों के पास पनचक्की और पवनचक्की स्थापित करने के लिए धन नहीं था इसलिए इस मामले में पहल लार्ड द्वारा की गई।

किसान खेती योग्य भूमि का विस्तार करने लगे उन्होंने फ़सलों की तीन चक्रीय व्यवस्था को अपनाया और गाँवों में लोहार की दुकानें और भट्टियाँ विस्थापित की.

जहाँ पर लोहे की नोक वाले हल और घोड़े की नाल बनाने और मरम्मत करने के काम को सस्ती दरों पर किया जाने लगा।


चौथा वर्ग:

नए नगर और नगरवासी

कृषि में विस्तार हुआ और इसके साथ ही जनसंख्या, व्यापार और नगरों का भी विस्तार हुआ यूरोप की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही थी

लोगों को बेहतर आहार मिल रहा था जिससे लोगों की जीवन-अवधि बढ़ गयी थी ।

तेरहवीं सदी तक एक औसत यूरोपीय आठवीं सदी की तुलना में दस वर्ष अधिक जी सकता था।

पुरुषों की तुलना में स्त्रियों और बालिकाओं की जीवन-अवधि छोटी होती थी क्योंकि पुरुष बेहतर भोजन करते थे।

रोमन साम्राज्य के पतन के बाद उसके नगर उजाड़ और तबाह हो गए थे।

परन्तु ग्यारहवीं सदी से जब कृषि का विस्तार हुआ और वह अधिक जनसंख्या का भार सहने में सक्षम हुई तो नगर फिर से बढ़ने लगे।

जिन कृषकों के पास अपनी आवश्यकता से अधिक खाद्यान्न होता था.

उन्हें ऐसे स्थान की जरूरत महसूस हुई जहाँ वे अपना एक बिक्री केन्द्र स्थापित कर सकें और जहाँ से

वे अपने उपकरण और कपड़े खरीद सकें।

इस ज़रूरत के कारण छोटे विपणन केन्द्रों का विकास किया गया

जिनमें धीरे-धीरे नगरों के लक्षण विकसित होने लगे

नगरों में लोग बसे, यहाँ सुविधाएँ मौजूद होती थी

'नगर की हवा स्वतंत्र बनाती है' एक प्रसिद्ध कहावत थी।

स्वतंत्र होने की इच्छा रखने वाले अनेक कृषिदास भाग कर नगरों में छिप जाते थे।

अपने लॉर्ड की नज़रों से एक वर्ष व एक दिन तक छिपे रहने में सफल रहने वाला कृषिदास एक स्वाधीन नागरिक

बन जाता था।

नगरों में रहने वाले अधिकतर व्यक्ति या तो स्वतंत्र कृषक या भगोड़े कृषिदास थे जो कार्य की दृष्टि से अकुशल श्रमिक होते थे।

दुकानदार और व्यापारी बहुतायत में थे। बाद में विशिष्ट कौशल वाले व्यक्तियों जैसे साहूकार और वकीलों की आवश्यकता हुई। बड़े नगरों की जनसंख्या लगभग तीस हज़ार होती थी।

ये कहा जा सकता है कि उन्होंने समाज में एक चौथा वर्ग बना लिया था।

आर्थिक संस्था का आधार 'श्रेणी' (Guild) था।

प्रत्येक शिल्प या उद्योग एक 'श्रेणी के रूप में संगठित था।

यह एक ऐसी संस्था थी जो उत्पाद की गुणवत्ता, उसके मूल्य और बिक्री पर नियंत्रण रखती थी।

'श्रेणी सभागार' प्रत्येक नगर का आवश्यक अंग था। यह आनुष्ठानिक समारोहों के लिए था

पहरेदार नगर के चारों ओर गश्त लगाकर शांति स्थापित करते थे,

संगीतकारों को प्रीतिभोजों और नागरिक जुलूसों में अपनी कला का प्रदर्शन करने के लिए बुलाया जाता था और सरायवाले यात्रियों की देखभाल करते थे।

ग्यारहवीं सदी आते-आते. पश्चिम एशिया के साथ नवीन व्यापार मार्ग विकसित हो रहे थे

स्कैंडिनेविया के व्यापारी वस्त्र के बदले में फ़र और शिकारी बाज़ लेने के लिए

उत्तरी सागर से दक्षिण की समुद्री यात्रा करते थे

अंग्रेज़ व्यापारी राँगा बेचने के लिए आते थे। बारहवीं सदी तक फ्रांस में वाणिज्य और शिल्प विकसित होने लगा था।

पहले, दस्तकारों को एक मेनर से दूसरे मेनर में जाना पड़ता था पर अब उन्हें एक स्थान पर बसना अधिक आसान लगा, जहाँ वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके और फिर अपनी आजीविका के लिए उनका व्यापार हो सके।

जैसे-जैसे नगरों की संख्या बढ़ने लगी और व्यापार का विस्तार होता गया,

नगर के व्यापारी अधिक अमीर और शक्तिशाली होने लगे


कथीड्रल नगर

अमीर व्यापारियों अपने धन को खर्च करने के लिए चर्चों को दान देते थे

बारहवीं सदी से फ्रांस में कथीड्रल कहलाने वाले बड़े चर्चों का निर्माण होने लगा।

यद्यपि वे मठों की संपत्ति थे पर लोगों के विभिन्न समूहों ने अपने श्रम, वस्तुओं और धन से उनके निर्माण में सहयोग दिया।

कथीड्रल पत्थर के बने विशाल चर्च होते थे इन्हें बनाने में अनेक वर्ष लगते थे।

जब इन्हें बनाया जा रहा था तो कथीड्रल के आसपास का क्षेत्र और अधिक बस गया

और जब उनका निर्माण पूर्ण हुआ तो वे स्थान तीर्थ-स्थल बन गए ।

इस प्रकार, उनके चारों तरफ छोटे नगर विकसित हुए। कथीड्रल को ऐसे बनाया जाता था

कि पादरी की आवाज़ लोगों के जमा होने वाले सभागार में साफ सुनाई देती थी

भिक्षुओं के द्वारा गाये गए गीत भी अधिक मधुर सुनाई पड़े,

साथ ही लोगों को प्रार्थना के लिए बुलाने वाली घंटियाँ दूर तक सुनाई पड़ सकें।

खिड़कियों के लिए अभिरंजित काँच का प्रयोग होता था।

दिन के वक्त सूरज की रोशनी उन्हें कथीड्रल के अंदर के व्यक्तियों के लिए चमकदार बना देती थी

और सूर्यास्त के पश्चात मोमबत्तियों की रोशनी उन्हें बाहर के व्यक्तियों के लिए दृश्यमान बनाती 

अभिरंजित काँच की खिड़कियों पर बने चित्र बाईबल की कथाओं का वर्णन करते थे

जिन्हें अनपढ़ व्यक्ति भी 'पढ़' सकते थे।

चौदहवीं सदी का संकट

14वीं सदी की शुरुआत तक यूरोप का आर्थिक विस्तार धीमा पड़ गया।

ऐसा तीन कारकों की वजह से हुआ।

उत्तरी यूरोप में, तेरहवी सदी के अंत तक पिछले तीन सौ वर्षों की तेज़ ग्रीष्म ऋतु का स्थान तीव्र ठंडी ग्रीष्म ऋतु ने ले लिया था।

पैदावार वाले मौसम छोटे हो गए और ऊँची भूमि पर फसल उगाना कठिन हो गया ।

तूफानों और बाढ़ों ने अनेक फार्म प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दिया जिसके परिणामस्वरूप सरकार को करों द्वारा कम आमदनी हुई।

भूमि का उपजाऊपन कम हो गया था ऐसा उचित भू-संरक्षण के अभाव में ऐसा हुआ था।

चरागाहों की कमी के कारण पशुओं की संख्या में कमी आ गई।

जनसंख्या वृद्धि इतनी तेजी से हुई कि उपलब्ध संसाधन कम पड़ गए, ऐसा अकाल के कारण हुआ था ।

1315 और 1317 के बीच यूरोप में भयंकर अकाल पड़े।

इसके पश्चात् 1320 के दशक में पशुओं की मौतें हुई।

इसके साथ-साथ ऑस्ट्रिया और सर्विया की चाँदी की खानों के उत्पादन में कमी के कारण धातु मुद्रा में भारी कमी आई जिससे व्यापार प्रभावित हुआ। इसके कारण सरकार को मुद्रा में चाँदी की शुद्धता को घटाना पड़ा और उसमें सस्ती धातुओं का मिश्रण करना पड़ा।

बारहवीं व तेरहवीं सदी में जैसे-जैसे वाणिज्य में विस्तार हुआ तो दूर देशों से व्यापार करने वाले पोत यूरोपीय तटों पर आने लगे।

पोतों के साथ-साथ चूहे आए जो अपने साथ ब्यूबोनिक प्लेग जैसी महामारी का संक्रमण (Black death) लाए।

पश्चिमी यूरोप, 1347 और 1350 के मध्य महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुआ।

व्यापार केन्द्र होने के कारण नगर सबसे अधिक प्रभावित हुए।

मठों और आश्रमों में जब एक व्यक्ति प्लेग की चपेट में आ जाता था तो सबको इससे बीमार होने में देर नहीं लगती थी और लगभग प्रत्येक मामले में कोई भी नहीं बचता था।

प्लेग, शिशुओं, युवाओं और बुर्जुगों को सबसे अधिक प्रभावित करता था।

इस प्लेग के पश्चात 1360 और 1370 में प्लेग की अपेक्षाकृत छोटी घटनाएँ हुई।

यूरोप की जनसंख्या 1300 में 730 लाख से घटकर 1400 में 450 लाख हो गई।

इस विनाश लीला के साथ आर्थिक मंदी के जुड़ने से व्यापक सामाजिक विस्थापन हुआ।

जनसंख्या में हास के कारण मज़दूरों की संख्या में अत्यधिक कमी आई।

कृषि और उत्पादन के बीच गंभीर असंतुलन उत्पन्न हो गया क्योंकि इन दोनों ही कामों में पर्याप्त संख्या में लग सकने वाले लोगों में भारी कमी आ गई थी।


खरीदारों की कमी के कारण कृषि उत्पादों के मूल्यों में कमी आई।

प्लेग के बाद इंग्लैंड में मज़दूरों, विशेषकर कृषि मजदूरों की भारी माँग के कारण मजदूरी की दरों में 250 प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई।

बचा हुआ श्रमिक बल अब अपनी पुरानी दरों से दुगुने की माँग कर सकता था।

सामाजिक असंतोष

लॉर्ड की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई।

अभिजात वर्ग की आमदनी घटने का मुख्य कारण मजदूरी की दरें बढ़ना और कृषि संबंधी मूल्यों की गिरावट थी

निराशा में लॉर्ड ने उन धन संबंधी अनुबंधों को तोड़ दिया जिसे उन्होंने हाल ही में अपनाया था और उन्होंने पुरानी मजदूरी सेवाओं को फिर से प्रचलित कर दिया।

इसके बाद कृषकों, खासकर पढ़े-लिखे और समृद्ध कृषकों द्वारा हिंसक विरोध किया गया।

सन 1323 में कृषकों ने फ्लैंडर्स (Flanders) में

1358 में फ्रांस में और 1381 में इंग्लैंड में विद्रोह किए।

इन विद्रोहों का क्रूरतापूर्वक दमन कर दिया गया

ये विद्रोह सर्वाधिक हिंसक तरीकों से उन स्थानों पर हुए जहाँ पर आर्थिक विस्तार के कारण समृद्धि हुई थी।

यह इस बात का संकेत था कि कृषक पिछली सदियों में हुए लाभों को बचाने का प्रयास कर रहे थे।

तीव्र दमन के बावजूद कृषक विद्रोहों की तीव्रता ने यह सुनिश्चित कर दिया कि पुराने सामंती रिश्तों को पुनः लादा नहीं जा सकता।

धन अर्थव्यवस्था (money economy) काफी अधिक विकसित थी जिसे पलटा नहीं

जा सकता था।

इसलिए, यद्यपि लॉर्ड विद्रोहों का दमन करने में सफल रहे, परन्तु कृषकों ने यह सुनिश्चित कर लिया कि गुलामी के पुराने दिन फिर नहीं लौटेंगे।


पंद्रहवीं और सोलहवीं सदियों में यूरोपीय शासकों ने अपनी सैनिक एवं वित्तीय शक्ति को बढ़ाया।

यूरोप के लिए उनके द्वारा बनाए गए नए शक्तिशाली राज्य उस समय होने वाले आर्थिक बदलावों के समान थे इतिहासकार इन राजाओं को 'नए शासक' (the new monarchs) कहने लगे।

फ्रांस में लुई ग्यारहवें

आस्ट्रिया में मैक्समिलन,

इंग्लैंड में हेनरी सप्तम

स्पेन में ईसाबेला और फरडीनैंड,

यह सभी निरकुंश शासक थे जिन्होंने संगठित स्थायी सेनाओं की प्रक्रिया, एक स्थायी नौकरशाही और राष्ट्रीय कर प्रणाली स्थापित करने की प्रक्रिया को शुरू किया।

स्पेन और पुर्तगाल ने यूरोप के समुद्र पार विस्तार की नई संभावनाओं की शुरुआत की।

बारहवीं और तेरहवीं सदी में होने वाला सामाजिक परिवर्तन इन राजतंत्रों की सफलता का

सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कारण था।

जागीरदारी (Vassalage) और सामंतशाही (lordship) वाली सामंत प्रथा के विलयन और आर्थिक विकास की धीमी गति ने इन शासकों को प्रभावशाली और सामान्य जनों पर अपने नियंत्रण को बढ़ाने का पहला मौका दिया।

शासकों ने सामंतों से अपनी सेना के लिए कर लेना बंद कर दिया और उसके स्थान पर बंदूकों और बड़ी तोपों से सुसज्जित प्रशिक्षित सेना बनाई जो पूर्ण रूप से उनके अधीन थी

करों को बढ़ाने से शासकों को पर्याप्त राजस्व प्राप्त हुआ जिससे वे पहले से बड़ी सेनाएँ रख सके।

इस तरह उन्होंने अपनी सीमाओं की रक्षा और विस्तार किया तथा राजसत्ता के प्रति होने वाले आंतरिक प्रतिरोधों को दबाया।

अभिजात वर्ग इसका विरोध करते थे, राजसत्ता के विरुद्ध हुए विरोधों का एक समान मुद्दा कराधान था।


इंग्लैंड में विद्रोह हुए जिनका 1497, 1536, 1547, 1549 और 1553 में दमन कर दिया गया।

फ्रांस में लुई X1 (1461-83) को ड्यूक लोगों और राजकुमारों के विरुद्ध एक लंबा संघर्ष करना पड़ा। अभिजातों और स्थानीय सभाओं के सदस्यों ने भी अपनी शक्ति के जबरदस्ती हड़पे जाने का विरोध किया। सोलहवीं सदी में फ्रांस में होने वाले 'धर्मयुद्ध' कुछ हद तक शाही सुविधाओं और क्षेत्रीय स्वतंत्रता के बीच संघर्ष थे। अभिजात वर्ग ने अपने अस्तित्व को बचाये रखने के लिए एक चतुरतापूर्ण परिवर्तन किया ।

नई शासन व्यवस्था के विरोधी रहने के स्थान पर उन्होंने जल्दी ही अपने को राजभक्तों में बदल लिया। इसी कारण से शाही निरंकुशता को सामंतवाद का परिष्कृत रूप माना जाता है।

फ्रांस और इंग्लैंड का बाद का इतिहास इन शक्ति संरचनाओं में हो रहे परिवर्तनों से बना था।

1614 में बालक शासक लुई XIII के शासनकाल में फ्रांस को परामर्शदात्री सभा, जिसे एस्ट्रेटस जनरल कहते थे ( जिसके तीन सदन थे, जो तीन वर्गों पादरी वर्ग, अभिजात वर्ग तथा अन्य का प्रतिनिधित्व करते थे) का एक अधिवेशन हुआ।

इसके पश्चात दो सदियों 1789 तक इसे फिर नहीं बुलाया गया क्योंकि राजा तीन वर्गों के साथ अपनी शक्ति बाँटना नहीं चाहते थे।


इंग्लैंड में नॉरमन विजय से भी पहले एंग्लो-सैक्सन लोगों की एक महान परिषद होती थी।

कोई भी कर लगाने से पहले राजा को इस परिषद की सलाह लेनी पड़ती थी।

यह आगे चलकर पार्लियामेंट के रूप में विकसित हुई

जिसमें हाउस ऑफ लॉर्स, जिसके सदस्य लॉर्ड और पादरी थे व हाउस ऑफ कामन्स, जो नगरों व ग्रामीण क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते थे शामिल थे।

राजा चार्ल्स प्रथम (1629-40) ने पार्लियामेंट को बिना बुलाए ग्यारह वर्षों तक शासन किया।

एक बार जब धन की आवश्यकता पड़ने पर वह उसे बुलाने को बाध्य हुआ तो पार्लियामेंट का एक भाग उसके विरोध में हो गया और बाद में उसे प्राणदंड देकर गणतंत्र की स्थापना की गई।

परन्तु यह व्यवस्था अधिक दिनों तक नहीं चल पाई और राजतंत्र की पुनः स्थापना हुई; परंतु इस शर्त पर कि अब पार्लियामेंट नियमित रूप से बुलाई जाएगी।

वर्तमान में फ्रांस में गणतंत्रीय सरकार है और इंग्लैंड में राजतंत्र है। इसका कारण यह है कि सत्रहवीं सदी के बाद दोनों राष्ट्रों के इतिहासों ने अलग-अलग दिशाएँ अपनाई ।

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