Anurag Asati Classes

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कार्यपालिका - Class 11th Political Science | Chapter-4 | Executive | karyapalika Notes In Hindi

कार्यपालिका  - Class 11th Political Science | Chapter-4 | Executive | karyapalika Notes In Hindi

कार्यपालिका  - Class 11th Political Science | Chapter-4 | Executive | karyapalika Notes In Hindi

कक्षा 11वीं राजनीति शास्‍त्र
           अध्याय- 4

           कार्यपालिका

           [Executive]

सरकार के प्रमुख अंग

विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका सरकार के प्रमुख अंग होते है

यह तीनों अंग मिलकर शासन का कार्य करते हैं और जनकल्याण में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं

संविधान के द्वारा इन तीनों अंगों में तालमेल और संतुलन बनाया जाता है


कार्यपालिका क्या है ?

कार्यपालिका से अभिप्राय ऐसे लोगों के समूह से है जो नियम, कायदे, कानूनों को लागू करवाने का कार्य करते हैं

विधायिका के द्वारा बनाये गए कानून को लागू करने का कार्य कार्यपालिका के द्वारा किया जाता है

कार्यपालिका के अंतर्गत प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, मंत्री और सरकारी कर्मचारी (सिविल सेवा के सदस्य ) आते हैं

कार्यपालिका

स्थाई कार्यपालिका   - नौकरशाही, सिविल सर्वेंट                                               

अस्थाई कार्यपालिका - राजनीतिक कार्यपालिका ,   राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद इत्यादि


विभिन्न देशों में कार्यपालिका

सभी देशों में एक जैसी कार्यपालिका नहीं होती है

उदाहरण - अमेरिका के राष्ट्रपति के कार्य और शक्तियां

भारत के राष्ट्रपति के कार्य और शक्तियों से बिलकुल अलग होंगे

इसी प्रकार ब्रिटेन की महारानी के कार्य और शक्तियां भूटान के राजा से भिन्न होंगे

अमेरिका में अध्यक्षात्मक व्यवस्था है और शक्तियाँ राष्ट्रपति के पास हैं।

कनाडा में संसदीय लोकतंत्र और संवैधानिक राजतंत्र है

जिसमें महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राज्य की प्रधान और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है।

फ्रांस में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अर्द्ध- अध्यक्षात्मक व्यवस्था के हिस्से हैं।

राष्ट्रपति प्रधानमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है पर उन्हें पद से हटा नहीं सकता क्योंकि वे संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

जापान में संसदीय व्यवस्था है जिसमें राजा देश का और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है।

इटली में एक संसदीय व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति देश का और प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है।

रूस में एक अर्द्ध-अध्यक्षात्मक व्यवस्था है राष्ट्रपति देश का प्रधान और राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रधानमंत्री सरकार का प्रधान है।

जर्मनी में एक संसदीय व्यवस्था है जिसमें राष्ट्रपति देश का नाममात्र का प्रधान और चांसलर सरकार का प्रधान है।

संसदात्मक कार्यपालिका

सरकार का प्रमुख प्रधानमंत्री होता है

विधायिका में बहुमत वाले दल का नेता होता है

विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है

अर्ध- अध्यक्षात्मक कार्यपालिका

राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है

प्रधानमंत्री सरकार का प्रमुख होता है

प्रधानमंत्री और उसका मंत्रिपरिषद विधायिका के प्रति जवाबदेह होता है

अध्यक्षात्मक कार्यपालिका

राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है

राष्ट्रपति ही सरकार का प्रमुख होता है

राष्ट्रपति का चुनाव आमतौर पर प्रत्यक्ष मतदान से होता है

वह विधायिका के प्रति जवाबदेह नहीं होता है

 

भारत में संसदीय कार्यपालिका

जब भारत का संविधान लिखा जा रहा था तब तक भारत को 1919 और 1935 के अधिनियमों के अंतर्गत संसदीय व्यवस्था के संचालन का कुछ अनुभव हो चुका था।

इस अनुभव से हमने सीखा था कि संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत कार्यपालिका को जन- प्रतिनिधियों के द्वारा प्रभावपूर्ण तरीके से नियंत्रित किया जा सकता है।

भारतीय संविधान के निर्माता एक ऐसी सरकार चाहते थे जो भारत की जनता की अपेक्षाओं के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी हो।

संसदीय कार्यपालिका की जगह दूसरा विकल्प अध्यक्षात्मक सरकार का था।

लेकिन अध्यक्षात्मक कार्यपालिका मुख्य कार्यकारी के रूप में राष्ट्रपति पर बहुत बल देती है और उसे सभी शक्तियों का स्रोत मानती है।

अध्यक्षात्मक कार्यपालिका में व्यक्ति पूजा का खतरा बना रहता है।

संविधान निर्माता एक ऐसी सरकार चाहते थे जिसमें एक शक्तिशाली कार्यपालिका तो हो, लेकिन साथ-साथ उसमें व्यक्ति पूजा पर पर्याप्त अंकुश लगे हों।

संसदीय व्यवस्था में ऐसी अनेक प्रक्रियाएँ हैं जो यह सुनिश्चित करती हैं कि कार्यपालिका, विधायिका या जनता के प्रतिनिधियों के प्रति उत्तरदायी होगी और उनसे नियंत्रित भी।

इसलिए, संविधान में राष्ट्रीय और प्रांतीय दोनों ही स्तरों पर संसदीय कार्यपालिका की व्यवस्था को स्वीकार किया गया।

इस व्यवस्था के अंतर्गत राष्ट्रपति, भारत में राज्य का औपचारिक प्रधान होते हैं तथा प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् राष्ट्रीय स्तर पर सरकार को चलाते हैं

भारत के संविधान में औपचारिक रूप से संघ की कार्यपालिका शक्तियाँ राष्ट्रपति की दी गई हैं।

लेकिन वास्तव में प्रधानमंत्री के नेतृत्व में बनी मंत्रिपरिषद् के माध्यम से राष्ट्रपति इन शक्तियों का प्रयोग करता है। राष्ट्रपति 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। राष्ट्रपति पद के लिए सीधे जनता के द्वारा निर्वाचन नहीं होता ।

राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष तरीके से होता है। इसका अर्थ यह है कि राष्ट्रपति का निर्वाचन आम नागरिक नहीं बल्कि निर्वाचित विधायक और सांसद करते हैं। यह निर्वाचन समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली और एकल संक्रमणीय मत के सिद्धांत के अनुसार होता है।

केवल संसद ही राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया के द्वारा उसके पद से हटा सकती है। महाभियोग केवल संविधान के उल्लंघन के आधार पर लगाया जा सकता है।


राष्ट्रपति की शक्ति और स्थिति

राष्ट्रपति सरकार का औपचारिक प्रधान है।

उसे औपचारिक रूप से बहुत-सी कार्यकारी, विधायी, कानूनी और आपात् शक्तियाँ प्राप्त हैं।

संसदीय व्यवस्था में राष्ट्रपति वास्तव में इन शक्तियों का प्रयोग मंत्रिपरिषद् की सलाह पर ही करता है।

प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद् को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है और वे ही वास्तविक कार्यकारी हैं।

अधिकतर मामलों में राष्ट्रपति को मंत्रिपरिषद् की सलाह माननी पड़ती है।

राष्ट्रपति के विशेषाधिकार

राष्ट्रपति को सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दों और मंत्रिपरिषद् की कार्यवाही के बारे सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।

प्रधानमंत्री का यह कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्रपति द्वारा माँगी गई सभी सूचनाएँ उसे दे।

राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री को पत्र लिखता है और देश की समस्याओं पर विचार व्यक्त करता है।

राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद् की सलाह को वापस लौटा सकता है और उसे अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है।

ऐसा करने में राष्ट्रपति अपने विवेक का प्रयोग करता है। जब राष्ट्रपति को ऐसा लगता हैं कि सलाह में कुछ गलती है या कानूनी रूप से कुछ कमियाँ हैं या फ़ैसला देश के हित में नहीं है, तो वह मंत्रिपरिषद् से अपने निर्णय पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है।

लेकिन मंत्रिपरिषद् पुनर्विचार के बाद भी उसे वही सलाह दुबारा दे सकती है और तब राष्ट्रपति उसे मानने के लिए बाध्य भी होगा,

राष्ट्रपति के पास वीटो की शक्ति (निषेधाधिकार) होती है जिससे वह संसद द्वारा पारित विधेयकों (धन विधेयकों को छोड़ कर) पर स्वीकृति देने में विलंब कर सकता है या स्वीकृति देने से मना कर सकता है।

राष्ट्रपति उसे संसद को लौटा सकता है या उस पर पुनर्विचार करने के लिए कह सकता है।

राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है।

सामान्यतः लोकसभा के बहुमत दल के नेता को प्रधानमंत्री के रूप में नियुक्त किया जाता है, लेकिन यदि चुनाव के बाद किसी भी नेता को लोकसभा में बहुमत प्राप्त न हो।

यदि गठबंधन बनाने के प्रयासों के बाद भी दो या तीन नेता यह दावा करें कि उन्हें लोकसभा में बहुमत प्राप्त है, तो क्या होगा?

तब राष्ट्रपति को यह निर्णय करना है कि वह किसे प्रधानमंत्री नियुक्त करे । इस परिस्थिति में राष्ट्रपति को अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर यह निर्णय लेना होता है कि किसे बहुमत का समर्थन प्राप्त है या कौन सरकार बना सकता है और सरकार चला सकता है।

राष्ट्रपति की आवश्यकता क्यों हैं ?

यदि सत्ता दल का समर्थन न रहे, ऐसे में मंत्रिपरिषद को कभी भी हटाया जा सकता है,

ऐसे समय में एक ऐसे राष्ट्र प्रमुख की आवश्यकता पड़ती है जिसका कार्यकाल स्थायी हो, जो सांकेतिक रूप से पूरे देश का प्रतिनिधित्व कर सकें।

राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में उपराष्ट्रपति ये सभी कार्य करते हैं।

भारत का उपराष्ट्रपतिः पांच वर्ष के लिए चुना जाता है, जिस तरह राष्ट्रपति को चुना जाता है। वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है और राष्ट्रपति की मृत्यु, त्यागपत्र, महाभियोग द्वारा हटाया जाने या अन्य किसी कारक के पद रिक्त होने पर वह कार्यवाहक राष्ट्रपति का काम करता है।


प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद

प्रधानमंत्री के पास वास्तविक शक्तियां होती है

वह लोकसभा में बहुमत वाले दल का नेता होता है

प्रधानमंत्री, मंत्रिपरिषद का प्रधान होता है

यदि प्रधानमंत्री बहुमत खो देता है तो पद भी खो देता है

प्रधानमंत्री तय करता है की उसकी मंत्रिपरिषद में कौन लोग मंत्री होंगे

प्रधानमंत्री पद के लिए योग्यता

आयु 25 वर्ष की हो चुकी हो

बहुमत का समर्थन प्राप्त हो

भारत का नागरिक हो

यदि प्रधानमंत्री बनने के समय वो संसद का सदस्य न हो तो उसे छः महीने के भीतर संसद के सदस्य के रूप में निर्वाचित हो


प्रधानमंत्री की शक्तियां

प्रधानमंत्री मंत्रालयों को आवंटन प्रधानमंत्री करता है

प्रधानमंत्री मंत्रिपरिषद पर नियंत्रण रखता है

प्रधानमंत्री विभिन्न विभागों में तालमेल स्थापित करता है

मीडिया तक पहुँच

मंत्रिपरिषद को अपदस्थ करना

राष्ट्रपति तथा संसद के बीच सेतु का कार्य करना

विदेश यात्राएं, संधियाँ करना

राज्यों में कार्यपालिका का स्वरूप

राज्यों में एक राज्यपाल होता है

जिसे राष्ट्रपति केंद्र की सलाह पर नियुक्त करता है

राज्यों में मुख्यमंत्री होते है जो विधानसभा में बहुमत दल का नेता होता है


स्थाई कार्यपालिका – नौकरशाही

शासन के कार्यकारी अंग में प्रधानमंत्री, मंत्रीगण और नौकरशाही का एक विशाल संगठन सम्मिलित होता है।

सरकार के स्थाई कर्मचारी के रूप में कार्य करने वाले प्रशिक्षित और प्रवीण अधिकारी नीतियों को बनाने तथा उसे लागू करने में मंत्रियों का सहयोग करते हैं।

संसदीय शासन में, विधायिका प्रशासन को नियंत्रित करती है।

भारत में एक दक्ष प्रशासनिक मशीनरी मौजूद है। लेकिन यह मशीनरी राजनीतिक रूप से उत्तरदायी है। नौकरशाही से यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह राजनीतिक रूप से तटस्थ हो ।

आज भारतीय नौकरशाही का स्वरूप बहुत बदल गया है अब यह काफी जटिल हो गया है

इसमें अखिल भारतीय सेवाएँ, प्रांतीय सेवाएँ, स्थानीय सरकार के कर्मचारी और लोक उपक्रमों के तकनीकी तथा प्रबंधकीय अधिकारी सम्मिलित हैं।

हमारे संविधान निर्माता गैर-राजनीतिक और व्यावसायिक रूप से दक्ष प्रशासनिक मशीनरी के महत्व को जानते थे।

वे सिविल सेवा या नौकरशाही के सदस्यों को बिना किसी भेदभाव के योग्यता के आधार पर चयनित करना चाहते थे।

भारत सरकार के लिए सिविल सेवा के सदस्यों की भर्ता की प्रक्रिया का कार्य संघ लोक सेवा आयोग को सौंपा गया है। ऐसे ही लोक सेवा आयोग राज्यों में भी बनाए गए हैं।

लोक सेवा आयोग के सदस्यों को एक निश्चित कार्यकाल के लिए नियुक्त किया जाता

उनको सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की जाँच के आधार पर ही निलंबित या अपदस्थ किया जा सकता है।

भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) तथा भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के लिए उम्मीदवारों का चयन संघ लोक सेवा आयोग करता है।


सिविल सेवाओं का वर्गीकरण

अखिल भारतीय सेवाएँ-  भारतीय प्रशासनिक सेवा ,भारतीय पुलिस सेवा

केंद्रीय सेवाएँ- भारतीय विदेश सेवा ,भारतीय राजस्व सेवा

प्रांतीय सेवाएँ - प्रांतीय सिविल सेवा

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