Anurag Asati Classes

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Class 12th Chapter 5 History | यात्रियों के नजरिए | Through the eyes of Travellers | Yatriyon ke najariya se Notes in Hindi

Class 12th Chapter 5 History | यात्रियों के नजरिए | Through the eyes of Travellers | Yatriyon ke najariya se Notes in Hindi

Class 12th Chapter 5 History | यात्रियों के नजरिए | Through the eyes of Travellers | Yatriyon ke najariya se Notes in Hindi

लोग यात्राएं क्यों करते थे ?

  • कार्य की तलाश में
  • प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए
  • व्यापार के लिए
  • सैनिक पुरोहित और तीर्थ यात्रियों के रूप में
  • साहस की भावना से प्रेरित होकर

भारत में आने वाले यात्री

अल बिरूनी ( 11वी शताब्दी में आया )

इब्नबतूता ( 14वी शताब्दी में आया )

फ्रांस्वा बर्नियर ( 17वी शताब्दी में आया )

 

अल बिरूनी

जन्म स्थान : उज्बेकिस्तान में ख्वारिज्म नाम की जगह हुआ |

जन्म : 973 में जिस जगह अल बिरूनी का जन्म हुआ था

वह जगह शिक्षा के लिए बहुत प्रसिद्ध थी

अल बिरूनी ने अपने समय की सबसे बेहतर शिक्षा प्राप्त की थी |

भाषाएँ : सीरियाई, फारसी, हिब्रू,संस्कृते |

अल बिरूनी को यूनानी भाषा नहीं आती थी

अल बिरूनी भारत कैसे आया

सन 1017 में ख्वारिज्म पर आक्रमण हुआ

यह आक्रमण सुलतान महमूद ने किया था |

सुलतान महमूद ख्वारिज्म पर आक्रमण करके यहाँ के सभी कवियों और विद्वानों को अपने साथ अपनी राजधानी गजनी ले गया |

जिन विद्वानों को महमूद अपने साथ ले गया था उनमे से अल बिरूनी भी एक था

जब पंजाब का हिस्सा भी महमूद के नियंत्रण में आ गया तब अल बिरूनी की भारत आने की रुचि बढ़ी |

अल बिरूनी ने ब्राह्मण पुरोहितों तथा विद्वानों के साथ कई वर्ष बिताए और संस्कृत, धर्म तथा दर्शन का ज्ञान प्राप्त किया

 

 [ किताब उल हिन्द ]

यह किताब अल बिरूनी ने लिखी थी | यह किताब अरबी भाषा में लिखी गयी थी |

इस किताब की भाषा बहुत सरल थी ।

इस विस्तृत ग्रन्थ में : धर्म, दर्शने, त्यौहार, खगोल विज्ञान रीति रिवाजे, प्रथाओं भार तौल, मूर्तिकला, कानून के बारे में लिखा गया था |

यह किताब एक विशेष तरीके से लिखी गयी थी

इसमें शुरू में एक प्रश्न पूछा जाता था

फिर उसका वर्णन लिखा गया था

अंत में उसकी अन्य संस्कृतियों से तुलना की जाती थी |

अल बिरूनी का जाति व्यवस्था विवरण

अल बिरूनी ने यह बताने की कोशिश की थी, कि जाति व्यवस्था केवल भारत में ही नहीं

बल्कि फारस में भी है और अन्य देशों में भी है |

अल बिरूनी ने बताया की प्राचीन फारस में चार वर्ग हुआ करते थे :

पहला- घुड़सवार तथा शासक वर्ग

दूसरा - भिक्षु तथा पुरोहित वर्ग

तीसरा- वैज्ञानिक, चिकित्सक तथा खगोलशास्त्री वर्ग

चौथा -किसान और अन्य शिल्पकार वर्ग

अलबरूनी ने जाति व्यवस्था के संबंध में ब्राह्मणवादी व्याख्या को माना लेकिन उसने अपवित्रता की मान्यता को अस्वीकार किया

अलबरूनी ने लिखा कि " हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफल होती है

सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है

अलबरूनी ने जोर देकर कहा कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता

उसके अनुसार जाति व्यवस्था में अपवित्रता की अवधारणा प्रकृति के नियमों के खिलाफ थौ .

इब्न बतूता (एक जिददी यात्री )

इब्न बतूता एक हठीला और जिद्दी यात्री था |

इब्न बतूता ने जो किताब लिखी थी उसे रिहला कहा जाता है |

यह यात्रा वृतांत अरबी में लिखा गया था |

इब्न बतूता के वृतांतों से हमें बहुत ही रोचक जानकारियाँ मिलती हैं |

जन्म : मोरक्को के तैन्जियर में इब्न बतूता का जन्म एक सम्मानित और शिक्षित परिवार में हुआ

था |

इब्न बतूता का परिवार इस्लामी कानूनों का जानकार था

इब्न बतूता ने बहुत कम उम्र में ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर ली थी |

इब्न बतूता को यात्राओं का बहुत शौक था |

इब्न बतूता मानता था की किताबी ज्ञान से ज्यादा ज्ञान हमें यात्राओं से मिलता है ।

इब्न बतूता भारत कैसे आया ?

भारत आने से पहले इब्न बतूता मक्का, सीरिया, इराक, फारस, ओमान की यात्रा करके आया था |

मध्य एशिया के रास्ते होकर इब्न बतूता सन 1333 में स्थलमार्ग से सिंध पहुंचा |

उसने दिल्ली के सुलतान मो. बिन तुगलक के बारे में सुना था |

इब्न बतूता सुलतान से एक बार मिलना चाहता था |

इब्नबतूता ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया |

इब्न बतूता का हुनर देख कर सुल्तान तुगलक ने उसे दिल्ली का न्यायधीश नियुक्त किया |

इब्न बतूता न्यायधीश के पद पर कई सालों तक रहा |

इब्न बतूता ने सुलतान का विश्वास खो दिया और फिर उसे जेल में डाल दिया गया |

कुछ समय बाद सुलतान और उसके बीच की ग़लतफहमी दूर हो गयी और उसे राजकीय सेवा करने का मौका मिला और दूत के रूप में चीन भी गया

इब्न बतूता को बहुत बार उसकी यात्राओं के दौरान लूटा गया था परन्तु फिर भी वह यात्रा करता रहा वह एक जिद्दी यात्री था |

इब्न बतूता द्वारा शहरों का वर्णन

इब्न बतूता जब भारत आया तो वो भारत के बाजारों में घूमा |

इब्न बतूता ने भारतीय शहरों को अवसरों से भरा पाया |

इब्न बतूता ने बताया की अगर किसी के पास कौशल है और इच्छा है तो इस शहर में अवसरों की कमी नही है

शहर घनी आबादी वाले और भीड़ भाड़ वाले थे ।

सड़कें  बहुत ही चमक-धमक वाली थी |

बाजार बहुत ही रंग बिरंगे एवं सुंदर थे । 

यहाँ के बाजार अलग -अलग प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे |

इब्न बतूता ने दिल्ली को एक बड़ा शहर बताया और बताया की यह भारत में सबसे बड़ा है |

इब्न बतूता बताता है की दौलताबाद भी दिल्ली से कम नहीं था और आकार में दिल्ली को चुनौती देता था |

बहुत सारे बाजारों में मंदिर और मस्जिद दोनों होते थे |

इब्न बतूता ने बताया की भारत में मलमल का कपड़ा महंगा था और केवल धनी आदमी ही उन्हें पहन सकते थे |


इब्न बतूता द्वारा संचार प्रणाली का वर्णन

भारत में दो प्रकार की डाक व्यवस्था थी :

अश्व डाक व्यवस्था

पैदल डाक व्यवस्था

अश्व डाक व्यवस्था

इसे उलक भी कहा जाता था | इस व्यवस्था में हर 4 मील पर राजकीय घोड़े खड़े रहते थे | और घोड़े सन्देश लेकर जाते थे | |

पैदल डाक व्यवस्था

इस व्यवस्था में प्रत्येक मील पर तीन अवस्थान होते थे जिन्हें दावा कहा जाता है ।

इसमें संदेशवाहक के हाथ में छड़ लिए दौड़ लगाता है और उसकी छड़ में घंटियां बंधी होती थी |

हर मील पर एक संदेशवाहक छड़ लेने के लिए तैयार रहता था |

व्यापारियों को प्रोत्साहित करने के लिए राज्य ने विशेष उपाय किए थे

लगभग सभी व्यापारिक मार्गों पर सराय और विश्रामगृह स्थापित किए थे यहां व्यापारियों को विभिन्न सुविधाएं मिल जाती थी


इब्न बतूता द्वारा दासों का वर्णन

इब्न बतूता बताता है दास बाजारों में सामान्य वस्तुओं की तरह खरीदे और बेचे जाते थे |

दासों को भेंट {Gift } में भी दिया जाता था |

जब इब्न बतूता सिंध पंहुचा तो उसने सुलतान मो. बिन तुगलक के लिए घोड़े और दास खरीदे और उन्हें भेंट किये |

दासों को सामान्य घर का काम करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था |

दास पालकियां भी उठाया करते थे |

इब्न बतूता बताता है की दासियों को अमीरों पर नजरे रखने के लिए नियुक्त किया जाता था 

दासियाँ संगीत और गाने का भी काम करती थी |

लगभग 1500 ईसवी में भारत में पुर्तगालियों के आगमन के बाद उनमें से कई लोगों ने भारतीय सामाजिक रीति रिवाज और धार्मिक प्रथाओं के विषय में विस्तृत वृतांत लिखे थे

कुछ ऐसे विदेशी लेखक थे जिन्होंने भारतीय ग्रंथों का यूरोपीय भाषा मैं अनुवाद किया

जेसुईट रॉबर्टो नोबिली

दुआर्ते बरबोसा ने दक्षिण भारत में व्यापार और समाज का एक विस्तृत विवरण लिखा

1600 ई. के बाद भारत में डच, अंग्रेज और फ्रांसीसी यात्री आने लगे थे इनमें से एक प्रसिद्ध नाम फ्रांसीसी जौहरी ज्यों बैप्टीटस तैवर्नियर का था

इसने कम से कम 6 बार भारत की यात्रा की और यह भारत की व्यापारी की स्थितियों से बहुत प्रभावित हुए

उन्होंने भारत की तुलना ईरान और ऑटोमन साम्राज्य से की

फ्रांस्वा बर्नियर

फ्रांस्वा बर्नियर फ्रांस का रहने वाला था

वह एक चिकित्सक, राजनीतिक, दार्शनिक तथा इतिहासकार था

वह मुगल साम्राज्य में अवसरों की तलाश में आया था

वह 1656 से 1668 तक भारत में 12 वर्ष तक रहा

फ्रांस्वा बर्नियर मुगल दरबार से नजदीकी रूप से जुड़ा रहा

सम्राट शाहजहां के जेष्ठ पुत्र दारा शिकोह के चिकित्सक के रूप में

और बाद में मुगल दरबार के 1 आर्मीनियाई अमीर दानिशमंद खान के साथ एक बुद्धिजीवी तथा वैज्ञानिक के रूप में

पूर्व और पश्चिम की तुलना

फ्रांस्वा बर्नियर ने देश के कई भागों की यात्रा की और विवरण लिखें

वह भारत में जो भी देखता था उसकी तुलना यूरोपीय स्थिति से करता था

बर्नियर ने भारत की स्थिति को यूरोप में हुए विकास की तुलना में दयनीय बताया

बर्नियर के कार्य फ्रांस में 1670 - 71 में प्रकाशित हुए थे

अगले 5 वर्षों के भीतर ही अंग्रेजी, डर्च, जर्मन और इतावली भाषाओं में इनका अनुवाद हो गया

1670 और 1725 के बीच उसका वृतांत फ्रांसीसी में 8 बार पुनर्मुद्रित हो चुका था

1684 तक यह तीन बार अंग्रेजी में पुनर्मुद्रित हुआ था

बर्नियर का ग्रंथ Travels In The Mughal Empire था 

बर्नियर ने अपने वृत्तांत में की गई चर्चाओं में मुगलों के इतिहास को एक प्रकार के वैश्विक ढांचे में स्थापित करने का प्रयास किया

उसने मुगलकालीन भारत की तुलना तत्कालीन यूरोप से की और यूरोप को श्रेष्ठ बताया

उसने भारत में जो भिन्नताएं महसूस कि उन्हें पदानुक्रम के अनुसार क्रमबद्ध किया

जिससे भारत पश्चिमी दुनिया को निम्न कोटि का प्रतीत हो

फ्रांस्वा बर्नियर का भूमि स्वमित पर प्रश्न

बर्नियर के अनुसार भारत और यूरोप के बीच

मूल भिन्नताओं में से एक भारत में निजी भूस्वामित्व का अभाव था बर्नियर भूमि पर निजी स्वामित्व को बेहतर मानता था

उसने भूमि पर राज्य के स्वामित्व को राज्य तथा उसके निवासियों दोनों के लिए हानिकारक माना

उसे यह लगा कि मुगल साम्राज्य में सम्राट सारी भूमि का स्वामी था

जो इसे अपने अमीरों के बीच में बांटता था और इसके अर्थव्यवस्था और समाज के लिए बुरे परिणाम होते थे

बर्नियर का मानना था की राजकीय भूस्वामित्व के कारण भूधारक अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे

इसलिए वे उत्पादन के स्तर को बनाए रखने और उसमें बढ़ोतरी के लिए अधिक निवेश के प्रति उदासीन थे

इस प्रकार निजी भूस्वामित्व के अभाव ने बेहतर भूधारकों के वर्ग के उदय को रोका

जो भूमि के रखरखाव और बेहतरी के प्रति सजग सचेत हों

इसी के चलते

  • कृषि का समान रूप से विनाश,
  • किसानों का उत्पीड़न और
  • समाज के सभी वर्गों के जीवन पतन की स्थिति

 उत्पन्न हुई सिवाय शासक वर्ग के

बर्नियर ने भारतीय समाज को दरिद्र लोगो का जनसमूह बताया

यह जनसमूह एक ऐसे समूह का अधीन थे जो अल्पसंख्यक था

बर्नियर ने बताया की भारत में 2 समूह थे

* एक बहुत अमीर

* एक बहुत गरीब

भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं थे

बर्नियर ने मुगल साम्राज्य को इस रूप में देखा -

इसका राजा भिखारियों और क्रूर लोगों का राजा था

इसके शहर और नगर विनष्ट तथा खराब हवा से दूषित थे

इसके खेत झाड़ीदार तथा घातक दलदल से भरे हुए थे

इसका मात्र एक ही कारण था -राजकीय भू- स्वामित्व


आश्चर्य की बात यह है कि

एक भी सरकारी मुगल दस्तावेज में यह बात नहीं मिलती

कि राज्य ही भूमि का एकमात्र स्वामी था

बर्नियर मुगल कालीन शहरों को शिविर नगर कहता है

उसका आशय उन नगरों से जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे

उसका विश्वास था कि यह राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतन हो जाता था

बर्नियर कहता है कि सभी प्रकार के नगर अस्तित्व में थे

  • उत्पादन केंद्र
  • व्यापारिक नगर
  • बंदरगाह नगर
  • धार्मिक केंद्र
  • तीर्थ स्थान

व्यापारी अक्सर मजबूत सामुदायिक अथवा बंधुत्व के संबंधों से जुड़े होते थे और अपनी जाति तथा व्यवसायिक संस्थाओं के माध्यम से संगठित रहते थे

पश्चिमी भारत में ऐसे समूहों को महाजन कहा जाता था और उनके मुखिया को सेठ कहा जाता था

अन्य शहरी समूहों में व्यवसायिक वर्ग था

जैसे कि - चिकित्सक, अध्यापक, अधिवक्ता, चित्रकार, संगीतकार, सुलेखक आदि

बर्नियर का सती प्रथा पर मार्मिक विवरण

लाहौर में मैंने एक बहुत ही सुंदर अल्पवयस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में 12 वर्ष से अधिक नहीं थी कि बलि होते हुए देखा

उस भयानक नर्क की ओर जाते हुए वह असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृत्यु प्रतीत हो रही थी

उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता वह कांपते हुए बुरी तरह से रो रही थी

लेकिन तीन या चार ब्राह्मण, एक बूढ़ी औरत जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था

की सहायता से उसे अनिच्छुक पीड़िता को जबरन घातक स्थल की ओर ले गए,

उसे लकड़ियों पर बैठाया, उसके हाथ और पैर बांध दिए, ताकि वह भाग ना जाए और इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिंदा जला दिया गया

मैं अपनी भावनाओं को दबाने में और उनके कोलाहलपूर्ण तथा व्यर्थ के क्रोध को बाहर आने से रोकने में असमर्थ था

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