Anurag Asati Classes

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Class 12th Chapter- 6 Political Science | पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन | Environment and Natural Resources | Paryavaran aur Prakritik Sansadhan Notes in Hindi

Class 12th Chapter- 6 Political Science | पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन  | Environment and Natural Resources | Paryavaran aur Prakritik Sansadhan  Notes in Hindi

Class 12th Chapter- 6 Political Science | पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन  | Environment and Natural Resources | Paryavaran aur Prakritik Sansadhan  Notes in Hindi

पहले पर्यावरण की समस्या को ज्यादा गंभीरता से नहीं देखा जाता था लेकिन 1960 के दशक से पर्यावरण के मसले ने जोर पकड़ा

अब पर्यावरण के मुद्दे पर विभिन्न देश बात करने के लिए तैयार हो गए हैं

पर्यावरण में विभिन्न समस्याएँ -

कृषि योग्य भूमि घट रही है

चरागाह में चारे खत्म हो रहे हैं

मत्सय भंडार घट रहा है

जल प्रदूषण बढ़ रहा है

जल की कमी हो रही है

खाद्य उत्पादन में कमी हो रही है

विकासशील देशों में पीने का स्वच्छ पानी नहीं है

वनों की अंधाधुंध कटाई हो रही है

जैव विविधता को बहुत हानि हो रही है

ओजोन परत में छेद हो रहा है

पर्यावरण की समस्या राजनीतिक मुद्दा कैसे है ?

पर्यावरण की यह समस्याएं विभिन्न देशों की सरकारों के द्वारा ही सुलझाया जा सकता है

इसीलिए इसे राजनीति का मुद्दा माना जाता है


विद्वानों के एक समूह क्लब ऑफ राम ने 1972 में लिमिट्स टू ग्रोथ नामक पुस्तक लिखी

इस पुस्तक में दर्शाया गया की जनसंख्या के बढ़ने से किस प्रकार से संसाधन घट रहे हैं

UNEP ने पर्यावरण से संबंधित मुद्दों पर सम्मेलन करवाएं

UNEP - संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम


रियो सम्मलेन 1992

1992 में रियो सम्मेलन ब्राजील के रियो डी - जनेरियो में हुआ था

UNO का पर्यावरण और विकास के मुद्दे पर सम्मेलन

इसमें 170 देश शामिल हुए

 इस सम्मेलन में हजारों स्वयंसेवी संगठन शामिल हुए

इसमें कई बहुराष्ट्रीय निगम भी शामिल थे

इसे पृथ्वी सम्मेलन (Earth Supamit) भी कहा जाता है

रियो सम्मेलन से 5 वर्ष पहले 1987 में " आवर कॉमन फ्यूचर " नामक रिपोर्ट छपी थी

इस रिपोर्ट में यह बताया गया था कि आर्थिक विकास के चालू तौर-तरीके आगे चलकर टिकाऊ साबित नहीं होंगे

विश्व के दक्षिणी हिस्से में औद्योगिक विकास की मांग अधिक प्रबल है

इस कारण विश्व के कई भागों में खनिज उद्योगों की आलोचना एवं विरोध हुआ है

उदाहरण:-

फिलीपींस में कई समूह और संगठनों ने एक साथ मिलकर एक ऑस्ट्रेलियाई बहराष्ट्रीय कंपनी वेस्टर्न माइनिंग कॉरपोरेशन के खिलाफ अभियान चलाया है

कुछ आंदोलन बड़े बांधों के खिलाफ भी हुए हैं

बांध विरोधी आंदोलन नदियों को बचाने के आंदोलन के रूप में देखे जाते हैं

1980 के दशक के शुरुआती और मध्यवर्ती वर्षों में विश्व का पहला बांध विरोधी आंदोलन दक्षिणी गोलार्ध में चला

ऑस्ट्रेलिया में चला यह आंदोलन फ्रैंकलिन नदी तथा इसके परवर्ती वनों को बचाने का आंदोलन था

दक्षिणी गोलार्ध के देशों में तुर्की से लेकर थाईलैंड

और दक्षिण अफ्रीका तक,

इंडोनेशिया से लेकर चीन तक बड़े बांधो को बनाने की होड़ लगी है

भारत में भी बांध विरोधी आंदोलन चलाए गए हैं

(जैसे नर्मदा बचाओ आंदोलन )

संसाधनों की भू-राजनीति

 इस संसार में विभिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न प्रकारों के संसाधन उपलब्ध हैं

इन संसाधनों को लेकर झगड़ा अतीत से चलता रहा है

किसी देश के पास खनिज संसाधन है

तो किसी देश के पास तेल संसाधन

किसी देश के पास इमारती लकड़ी

तो कुछ देशों के पास नदी, पहाड़, चट्टान हैं

कुछ देशों के पास वृक्ष, वनस्पति, जानवर, पानी इत्यादि

यूरोपीय ताकतों का विश्व प्रसार का मकसद संसाधन ही था

 इमारती लकड़ी, तेल संसाधन हमेशा से महत्वपूर्ण रहे हैं

पेट्रोलियम पर नियंत्रण बनाने का प्रयास सदैव किया जाता रहा है

खाड़ी देशों के तेल संसाधनों का हथियाने का प्रयास किया गया

सऊदी अरब विश्व का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश

इराक दूसरे स्थान पर आता है

पानी भी एक महत्वपूर्ण संसाधन है

पानी के बिना जीवन नहीं हो सकता और विश्व के कुछ हिस्सों में साफ़ पीने का पानी उपलब्ध नहीं है

इसलिए जल संसाधन फसाद की जड़ बन सकते हैं

ऐसा माना जाता है कि तीसरा विश्वयुद्ध जल के कारण होगा (जलयुद्ध )

जल संसाधन के नजदीकी देश इसका दुरुपयोग करते हैं

पानी को लेकर हिंसक झड़प भी हुई है

उदाहरण -

1. 1950 से 1960 के दशक में इजरायल, सीरिया, जॉर्डन को बीच युद्ध

2. तुर्की, सीरिया, इराक के बीच फरात नदी जल विवाद ।


रियो सम्मेलन में यह बात खुलकर सामने आ गई थी

कि उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के देशों के सामने अलग-अलग

समस्याएं और चुनौतियां है

उत्तरी गोलार्ध के देश विकसित और धनी देश

दक्षिणी गोलार्ध के देश - गरीब और विकासशील देश


उत्तरी गोलार्ध की मुख्य चिंता

  • ओजोन परत में छेद
  • ग्लोबल वार्मिंग

दक्षिणी गोलार्ध की मुख्य चिंता

  • आर्थिक विकास गरीबी खत्म
  • करना
  • पर्यावरण प्रबंधन

रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, वानिकी के संबंध में कुछ नियमाचार निर्धारित हुए

इसमें एजेंडा - 21 के रूप में विकास के कुछ उपाय सुझाए गए

सम्मेलन में इस बात पर सहमति बनी थी कि आर्थिक वृद्धि का तरीका ऐसा होना चाहिए कि जिससे पर्यावरण को नुकसान ना पहुंचे

इसे टिकाऊ विकास का तरीका कहा गया

कुछ आलोचकों का कहना है कि एजेंडा - 21 का झुकाव पर्यावरण संरक्षण की बजाय आर्थिक वृद्धि की ओर है

विश्व की साझी सम्पदा

साझी संपदा ऐसे संसाधनों को कहते हैं जिन पर किसी एक का नहीं बल्कि पूरे समुदाय का अधिकार है

उदाहरण-

संयुक्त परिवार का चूल्हा

चरागाह

मैदान

कुआं

नदी इत्यादि

वैश्विक सम्पदा या मानवता की साझी विरासत

विश्व के कुछ हिस्से और क्षेत्र किसी एक देश के क्षेत्राधिकार से बाहर होते हैं इसलिए इनके प्रबंधन साझे तौर पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के द्वारा किया जाता है

इन्हें वैश्विक सम्पदा या मानवता की साझी विरासत कहा जाता है

उदाहरण -

वायुमंडल, बाहरी अन्तरिक्ष, अंटार्कटिका, समुंद्री सतह इत्यादि

वैश्विक संपदा की सुरक्षा के लिए संधियां -

अंटार्कटिका संधि 1959

मॉन्ट्रियल न्यायाचार 1987

अंटार्कटिका पर्यावरण न्यायचार 1991

सांझी परन्तु अलग - अलग जिम्मेदारी

पर्यावरण को लेकर उत्तरी और दक्षिणी गोलार्ध के देशों के रवैये में अंतर है

उत्तरी गोलार्ध के विकसित देश पर्यावरण को लेकर उसी रूप में चर्चा करना चाहते हैं जिस दशा में आज पर्यावरण मौजूद है

यह देश चाहते हैं कि पर्यावरण संरक्षण में हर देश बराबर की हिस्सेदारी निभाई

लेकिन दक्षिणी गोलार्ध के विकासशील देश यह चाहते हैं कि पर्यावरण को ज्यादा नुकसान विकसित देशों ने पहुंचाया

तो उसके नुकसान की भरपाई भी ज्यादा विकसित देश ही करें

विकासशील देश तो अभी औद्योगीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं

इन पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाए

इसी कारणवश 1992 रियो सम्मेलन में इसे प्रस्तावित किया गया और मान लिया गया

इसी सिद्धांत को ही साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी कहा गया।

संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार

UNFCCC (1992):- यूनाइटेड नेशन फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज ।

जलवायु के परिवर्तन से संबंधित संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमाचार UNFCCC (1992) भी कहा गया है कि

इस संधि को स्वीकार करने वाले देश अपनी क्षमता के अनुरूप पर्यावरण के

अपक्षय में अपनी हिस्सेदारी के आधार पर साझी परंतु अलग-अलग जिम्मेदारी निभाते हुए पर्यावरण की सुरक्षा का प्रयास करेंगे

इस नियमाचार को स्वीकार करने वाले देश इस बात पर सहमत थे 

कि ऐतिहासिक रूप से भी और मौजूदा समय में भी ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे ज्यादा भूमिका विकसित देशों की है

विकासशील देशों में प्रति व्यक्ति उत्सर्जन क्षमता कम है

इस कारण चीन, भारत और अन्य विकासशील देशों को क्योटो प्रोटोकाल के बाध्यता से अलग रखा ।

क्योटो प्रोटोकोल

क्योटो प्रोटोकोल एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है

इसके अंतर्गत औद्योगिक देशों के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए

जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन और हाइड्रो क्लोटोफ्लोरो कार्बन

आदि गैसों के बारे में ऐसा माना जाता है कि यह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में इनकी भूमिका है

वन प्रांतर

वनों के कुछ हिस्से को पवित्र मानकर उन्हें काटा नहीं जाता

ऐसा माना जाता है कि इन स्थानों पर देवी-देवताओं का वास है

इन्हें वन प्रांतर कहा जाता है

अक्सर गांव में हमें ऐसे स्थान देखने को मिल जाते हैं

इन वन प्रांतर को अलग-अलग राज्यों में अलग - अलग नाम से जाना जाता है

वन प्रांतर के विभिन्न नाम

राजस्थान में वानी

झारखंड में जेहरा थान और सरना

मेघालय में लिंगदोह

केरल में काव

उत्तराखंड में थान या देवभूमि

महाराष्ट्र में देवरहितस

पर्यावरण के मसले पर भारत का पक्ष

भारत ने 2002 में क्योटो प्रोटोकॉल में हस्ताक्षर किए

ऐसा माना जाता है कि भारत और चीन भी जल्दी ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में आगे नजर आएंगे

भारत का कहना है कि ग्रीन हाउस गैसों को कम करने में सबसे ज्यादा जिम्मेदारी विकसित देशों की होनी चाहिए

भारत का ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन

0.9 टन 2000 तक तथा 1.6 टन 2030 तक हो जाएगा

भारत सरकार द्वारा पर्यावरण को संरक्षण देने के लिए उठाये कदम-

भारत ने अपनी नेशनल ऑटो फ्यूल पॉलिसी में बदलाव किया

भारत में स्वच्छता ईंधन को अनिवार्य कर दिया

भारत में CNG द्वारा गाड़ियां चलाई जाने लगी

2001 में ऊर्जा संरक्षण अधिनियम पारित किया गया

2003 में बिजली अधिनियम पारित किया गया

स्वच्छ कोयले के उपयोग को बढ़ावा दिया जाने लगा

बायोडीजल का प्रयोग को मंजूरी मिली

इलेक्ट्रिक वाहनों को मंजूरी

रसोई गैस को प्रोत्साहन

पर्यावरण आन्दोलन

ऐसे लोग जो पर्यावरण के प्रति सचेत एवं जागरूक हैं।

जो लोग पर्यावरण को हानि से बचाना चाहते हैं

ऐसे लोगों ने पर्यावरण के संरक्षण के लिए आंदोलन चलाए हैं

ऐसे आंदोलन राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय दोनों स्तर पर चलाए गए हैं आज पूरे संसार में पर्यावरण आंदोलन जीवंत, विविधतापूर्ण और ताकतवर आंदोलन बन चुके हैं

यह आंदोलन अलग-अलग देशों में अलग-अलग मुद्दों पर चले हैं

जैसे -

वनों की कटाई के खिलाफ - चिले, इंडोनेशिया, भारत

खनन के खिलाफ - दक्षिणी गोलार्ध


बांध के खिलाफ – ऑस्ट्रेलिया

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के खिलाफ- विभिन्न देशों में

दक्षिणी देशों मैक्सिको, चिले, ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, 

अफ्रीका और भारत में वन- आंदोलन चले है

यहां वनों की कटाई का विरोध हुआ


मूलवासी

मूलवासी लोगों को ऐसे लोगों का वंशज माना गया है जो किसी मौजूदा

देश में बहुत दिनों से रहते चले आ रहे हैं

फिर किसी दूसरे देश के संस्कृति जातीय मूल के लोग यहां आए और इन लोगों को अपना गुलाम बना लिया

मूलवासी आज भी अपनी संस्कृति परंपरा के अनुसार रहते हैं

अपने खास ढर्रे पर जीवन यापन करते हैं

दुनिया भर में मूलवासी रहते हैं

इनके रहन-सहन संस्कृति परंपरा में कुछ समानता है

यह अपनी परंपरा को महत्व देते हैं

मूलवासी लोगो के आंकड़े

विश्व में 30 करोड़ मूलवासी हैं

फिलीपींस - 20 लाख मूलवासी

चिले - 10 लाख

बांग्लादेश - 6 लाख

उत्तरी अमेरिकी - 3 लाख 50 हजार

उत्तरी सोवियत - 10 लाख

मूलवासियों की समस्याएं और अधिकार

समानता के लिए संघर्ष

विकास के लिए संघर्ष

मूलवासी लोगों को स्वतंत्र पहचान की मांग

मूलवासी स्थान पर हक की मांग

जंगलों को ना उजाड़ने की मांग

इनके जीवन में दखलअंदाजी ना करने की मांग


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