आत्म परिचय- हरिवंश राय बच्चन ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th Atma Parichay - Harivansh Rai Bachchan- Easy Explained
आत्म परिचय- हरिवंश राय बच्चन ( सप्रसंग व्याख्या ) ( आरोह- Aroh ) Class 12th Chapter 1 Atma Parichay - Harivansh Rai Bachchan- Easy Explained
कक्षा 12वीं हिन्दी
अध्याय- 1
आत्मपरिचय
(संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या)
परिचय
- कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपने प्रेममय व्यक्तित्व पर स्वयं प्रकाश डाला है |
- वह जीवन के कर्तव्यों और दायित्वों के प्रति सचेत हैं |
- कवि ने अपने जीवन के बारे में बताया है |
सन्दर्भ -
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह-भाग -2’ की ‘आत्मपरिचय’ शीर्षक कविता से लिया गया है | इसके रचयिता महान कवि हरिवंश राय बच्चन जी हैं |
प्रसंग -
इन काव्य पंक्तियों में कवि अपने व्यक्तित्व की विशेषताओं कर वर्णन कर रहे हैं|
व्याख्या -
कवि
कहता है की वह सांसारिक कठिनाइयों से जूझ रहा है , फिर भी वह इस जीवन से प्यार करता है | वह अपनी आशाओं
और निराशाओं से संतुष्ट है
कवि
बताते हैं की मैं सांसों के तार लगे ह्रदय रुपी वाद्य यंत्र को लिए हुए हूँ, जिसे किसी ने छूकर झंकृत कर दिया है, कम्पित कर दिया है|
यहाँ
किसी ने कवि के प्रिय का प्रतीक है, यह प्रिय प्रेमिका हो सकती है , कोई मित्र हो सकता
है
कवि
चाहता है की वह अपने प्रिय के प्रति प्रेम व्यक्त करे, उसे अपना स्नेह दे प्यार दे, वह अपने जीवन में प्रेम की ललक के लिए घूम रहा है
कवि आगे कहते हैं की मेरा मन प्रेम की मदिरा पीकर मस्त है, कवि के ह्रदय में प्रेम की भावना है और कवि कहता है की ये दुनिया वाले मेरे बारे में चाहे कुछ भी कहें, मैं प्रेम का प्याला पीकर अपने में मग्न रहता है हूँ तथा प्रेम की मस्ती में झूमता हूँ |
लोग सामाजिक
सरोकारों
वाले
कवियों
को पसंद
करते
हैं
लेकिन
मैं
तो अपने
गीतों
में
अपने
मन के भावों
को व्यक्त
करता
हूँ
और अपनी
कविताओं
का विषय
भी मैं
खुद
ही हूँ
|
प्रसंग -
यहाँ कवि
अपने
उद्गारों
, सपनों
को उजाकर
कर अपनी
मौज
में
सबको
शामिल
करना
चाहता
है
व्याख्या -
कवि कहता है मैं इस दुनिया के बारे में नए नए मनोभाव रखता हूँ कभी कहना चाहता है कि वह अपने हृदय की स्नेहमयी वाणी को अभिव्यक्त करना चाहता है मैं इस संसार को अपने हृदय के कोमल भाव प्रदान करना चाहता हूँ
मनुष्य अपनी
असीम
इच्छाओं
एवं
आकांक्षाओं के कारण
इस भौतिक
संसार
में
उलझा
हुआ
है जीस
वजह
से उनके
बीच
प्रेम
भाव
निरंतर
समाप्त
होता
जा रहा
है
इस अमूल्य
प्रेम
भावना
से शून्य
होने
के कारण
ही यह संसार
कवि
को अपूर्ण
एवं
अप्रिय
लगता
है और कवि
चाहता
है इस दुनिया
में
प्रेम
हो |
व्याख्या -
कवि अपने प्रेम की मदहोशी
में मस्त है वह किसी भी सूरत में अपने प्रिय से दूर नहीं होना चाहता , इसलिए वह उसकी मधुर स्मृति की ज्वाला मन में
सुलगाए हुए है |
कवि को अपने प्रिय से बहुत
गहरा प्रेम है और कवि को प्रिय की यादों में ही आनंद मिलता है |
यह संसार सागर के समान
भयंकर है और इसे तैरने के लिए कोई न कोई नाव ज़रूर चाहिए , कवि अपने प्रिय के प्रेम को नाव बनाकर उसी के
सहारे यह भाव सागर को पार करना चाहता है |
कवि को संसार के विषय
वासनाओं से गहरा लगाव नहीं है वह तो अपने प्रिय की मधुर यादों में मस्त होकर सुख
दुःख में मस्त रहता है
व्याख्या -
इस काव्यांश में कवि ने
अपने यौवन का वर्णन करते हुए अपने मनोभावों को प्रकट किया है
कवि कहता है मेरे मन में
जवानी का पागलपन सवार रहता है मैं अपनी प्रेमिका से मिलने के लिए बेचैन रहता हूँ
मैं दीवानों की तरह जीता
हूँ मेरी दीवानगी मुझे कदम कदम पर निराशा से भर देती है वियोग के कारण सदा कसमसाता
रहता हूँ |
मेरे मन में अपनी प्रिय की
ऐसी कुछ यादें समाई हुई है जिसे याद करके मैं मन ही मन रोता हूँ परन्तु दुनिया के
सामने दिखाने को हस्ता हूँ |
प्रसंग -
इस
काव्यांश में कवि ने दुनियादारी की भागदौड़ को व्यर्थ बताते हुए उससे दूर रहने की
सलाह दी है
व्याख्या -
संसार में सब लोगों ने
मिलकर खूब प्रयत्न किया सबने सत्य को जानने की कोशिश की परंतु जीवन सत्य को कोई
जान नहीं पाया
इस कारण जिसे भी देखो वही
नादानी कर रहा है कवि ने सांसारिकता की दौड़ में लगे लोगों को नादान कहा है
जिससे संसार में जहाँ भी धन
वैभव या भोग सामग्री मिलती है वह वही दाना चुगने में लगा रहता है
नादानी में वह भूल जाता है
कि वह संसार के जाल में उलझ गया है कवि कहता है इतनी नादानी करने पर भी क्या मैं
उस संसार को मूर्ख ना कहूँ जो जानबूझकर सांसारिक लाभ और लोभ के चक्कर में उलझता जा
रहा है
मैं तो इस नादानी को समझ
गया हूँ इसलिए मैं सांसारिकता यानी की दुनियादारी का पाठ सीखने की बजाय उसे भूलने
में लगा हुआ हूँ |
प्रसंग -
इस
पद्यांश में सांसारिक लोगों से अलग भावुक कवि अपनी रचनात्मकता से एक भिन्न दुनिया
का निर्माण करना चाहता है , कवि भावना
के काल्पनिक संसार में जीते हैं –
व्याख्या -
मैं दुनियादारी से अलग
भावुक कवि हूँ संसार की चाल बिल्कुल अलग है संसारी लोग दुनियादारी निभाने में लगे
हुए हैं
मैं भावना को महत्व देता
हूँ, मेरा इस संसार से कोई मेल नहीं है संसार तो धन और
वैभव की दुनिया में खोया हुआ है |
कवि मन ही मन कल्पना करके
नए प्रेम भरे संसार की रचना करता है परंतु जब वह संसार प्रेम की कसौटी पर खरा नहीं
उतरता तो वह उसे मिटा डालता है इस प्रकार है निरंतर नए प्रेम में संसार की रचना
में रहता है
मैं रोज़ एक आदर्श समाज की
कल्पना करता हूँ परन्तु कल्पना को साकार न होते देखकर उसे मिटा डालता हूँ
यह संसार जिससे धन वैभव को
इकट्ठा करने में लगा रहता है मैं उसे पूरी तरह ठुकरा देता हूँ अर्थात कवि को प्रेम
भरा संसार चाहिए धनी और प्रेमशून्य नहीं |
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एक गीत भावार्थ दिन जल्दी जल्दी ढलता है [Click here]
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3)कविता के बहाने,
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कविता के बहाने,
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प्रसंग -
कवि
इस काव्यांश के द्वारा बताता है की उसके रोने में भी प्रेम छलकता है और वह अपने
प्रेम के आंसू रोता है –
व्याख्या -
कभी कहता है मेरे रोने में
भी प्रेम छलकता है मैं अपने गीतों में प्रेम के आंसू रोता हूँ
कवि का स्वर वेदना के कारण
कोमल है मधुर है शीतल है किंतु उसमें प्रिय को न पाने की आग भी उतनी ही प्रबल है
शीतलता और आग का यह संयोग अद्भुत बन पड़ा है |
मेरा जीवन यद्यपि प्रेम के
निराशा के कारण खंडहर सा है फिर भी उसमें गहरा आकर्षण है
प्रेम पर तो बड़े बड़े राजा अपने महल तक निछावर कर देते है मैं उसी मूल्यवान प्रेम को मन में बस हुए हूँ
कभी विरह की पीड़ा से व्यथित है उसके हृदय में अपने प्रिय की यादें बची हुई है उसके मधुर गीतों में निजी प्रेम को खोने की तीव्र वेदना सोई हुई है |
प्रसंग -
इस
काव्यांश के माध्यम से कवि ने बहुत सरल शब्दों में यह समझा दिया है कि उसके हर गीत
के पीछे उसका रुदन छुपा है –
व्याख्या -
कवि कहता है जिन्हें तुम
मेरे गाने कहते हो वह वास्तव में मेरे हृदय का रुदन है, यह रुदन प्रेम के निराशा के परिणाम स्वरूप प्रकट
हुआ है
जब मैं प्रेम के आवेग से
भरकर पूरे उन्माद से शब्दों में फूट पड़ता हूँ तो तुम उसे नए छंद की संज्ञा
देते
कवि स्वयं को कवि नहीं
दीवाना कहलाना पसंद करता है
कवि अपनी वास्तविकता को
जानता है, उसकी कविताओं के मूल में उसकी दीवानगी है और कवि
अपनी कविता के बारे में कहता है की उसमे उसकी निजी प्रेम पीड़ा, वेदना और दीवानगी प्रकट हुई है |
दुनिया मुझे कवि के रूप में
व्यर्थ ही सम्मान देती है वास्तव में तो मैं कवि नहीं अपितु प्रेम दीवाना हूँ
प्रसंग -
कवि
इस काव्यांश के माध्यम से संसार को सन्देश देता है कि सांसारिक झंझटों को भूलो और
प्रेम की मस्ती में खुद को लीन कर दो
व्याख्या -
कवि अपने प्रेम की दीवानी
और मस्ती में चूर है,
कवि कहता है मैं प्रेम दीवानों की तरह जीवन व्यतीत करता हूँ मेरे जीवन का एकमात्र ध्येय है प्रिय के प्रेम को पाना मैं प्रेम और यौवन के गीत गाता हूँ मेरे गीतों में ऐसी मस्ती हैं जिनको सुनकर लोग झूम उठते हैं प्रेम मेँ झुक जाते हैं और आनंद में लहराने लगते हैं
मैं सबको इसी प्रेम की
मस्ती में झूमने झोंकने और लहराने का संदेश दिया करता हूँ |
विशेष -
- भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है
- भाषा भावो के अनुरूप सहज, सरस और प्रवाहमयी है |
- मुक्त छंद का प्रयोग किया गया है
- कवि ने अलंकारों का काफी सुन्दर प्रयोग किया है
- कवि की भाषा लयात्मक, काव्यात्मक तथा भावानुरूप है
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