Class 12th Chapter-2 History | राजा, किसान और नगर- Kings, farmers and towns | Raja Kisan aur Nagar Notes in Hindi
Class 12th Chapter-2 History | राजा, किसान और नगर- Kings, farmers and towns | Notes in Hindi
- Ø हड़प्पा सभ्यता
2600 - 1900 BC
- Ø वैदिक सभ्यता 1500
- 600 BC
- Ø हर्यक वंश 544 – 412 BC
- Ø नाग वंश 412 – 344 BC
- Ø नन्द वंश 344 – 321 BC
- Ø मौर्य वंश 321 – 185 BC ( 322 - 185 BC )
नन्द वंश
vनन्द वंश का संस्थापक
-महापदमनन्द
vनन्द वंश काअंतिम शासक -धनानंद
धनानंद को चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा हराकर
मौर्य साम्राज्य की स्थापना की गई
- § हड़प्पा सभ्यता के बाद वैदिक सभ्यता अस्तित्व में आई
- § वैदिक सभ्यता आर्यों द्वारा बसाई सभ्यता थी
- § यह एक ग्रामीण सभ्यता थी
- § इसका काल 1500
– 600 ईसा पूर्व निर्धारित किया गया है
- § आर्यों की भाषा संस्कृत थी
- § इस समय ऋग्वेद का लिखा गया
ऋग्वेदिक काल 1500 - 1000 BC
Ø उत्तर वैदिक काल 1000
- 600 BC
·
ईस्ट
इंडिया कंपनी के अधिकारी जेम्स प्रिंसेप ने 1830 के दशक में ब्राह्मी और खरोष्ठी लिपियों का
अर्थ निकाल लिया
·
आरंभिक
अभिलेख तथा सिक्के में इन्हीं लिपियों का उपयोग किया गया था
·
जेम्स
प्रिन्सेप ने पता लगा लिया कि अधिकतर अभिलेखों और सिक्कों पर पियदस्सी लिखा है
·
पियदस्सी-
अर्थात मनोहर मुखाकृति वाला राजा
· कुछ अभिलेखों में राजा का नाम अशोक भी लिखा मिला है क्योंकि बौद्ध ग्रंथों के अनुसार अशोक सबसे अधिक प्रसिद्ध शासक था
अध्याय | पाठ का नाम | पीडीएफ़ डाउनलोड लिंक |
01. | ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ | |
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अभिलेख तथा अभिलेख शास्त्र
·
पत्थर
,धातु तथा मिट्टी के बर्तन पर खुदे हुए
लेख को अभिलेख कहा जाता है
·
जो
भी व्यक्ति अभिलेखों को बनवाते थे उनमें उन लोगों की उपलब्धियां उनके द्वारा किए
जाने वाले कार्य तथा उनके विचारों को लिखा जाता था
·
अधिकतर
अभिलेख राजाओं के क्रियाकलाप, विजय
अभियान तथा धार्मिक संस्थाओं को दिए गए दान का ब्यौरा देते हैं
·
कुछ
अभिलेखों में इनके निर्माण की तारीख भी मिली है प्राचीनतम अभिलेख प्राकृत भाषाओं
में लिखे जाते थे
·
प्राकृत
भाषा आम जनता की भाषा थी
·
इसके
अलावा तमिल,पाली,संस्कृत जैसी भाषा के शब्द भी अभिलेखों में मिले हैं
·
अभिलेखों के अध्ययन को
अभिलेख शास्त्र कहा जाता है
जनपद और महाजनपद
जनपद -
जन + पद =अर्थात जंहा लोग आकर बस जाए
ऐसा क्षेत्र है जहां लोग निवास करते हैं
·
महाजनपद-
लगभग 2500 वर्ष पूर्व कई जनपद अधिक महत्वपूर्ण हो गए थे इन्हें महाजनपद कहा जाने
लगा था
·
अधिकतर
महाजनपदों की एक राजधानी होती थी
·
इन
राजधानियों की किलेबंदी की गई थी
·
किलेबंद
राजधानी का रखरखाव सेना तथा नौकरशाहों द्वारा किया जाता था
·
अधिकांश
महाजनपदों पर राजा का शासन होता था लेकिन गण और संघ के नाम से प्रसिद्ध राज्य में
कई लोगों का समूह शासन करता था
गण - गण शब्द का प्रयोग कई सदस्य वाले समूह के लिए किया जाता था
संघ - संघ शब्द का प्रयोग किसी संगठन या सभा के लिए किया
जाता हैं
16 महाजनपदों का
उल्लेख बौद्ध और जैन धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है मगध, गांधार, वज्जि,
कौशल, कुरु, पांचाल,
अवंती इन महाजनपदों का नाम कई बार मिलता है भगवान महावीर तथा भगवान
बुद्ध इन्हीं गण से संबंधित थे
छठी शताब्दी ईसा पूर्व एक परिवर्तनकारी काल
·
आरंभिक
राज्यों का उदय
·
नगरों
का उदय
·
लोहे
का बढ़ता प्रयोग
·
सिक्कों
का विकास
·
बौद्ध
और जैन दार्शनिक विचारधाराओं का विकास
·
ब्राह्मणों
द्वारा धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों की रचना
धर्म शास्त्रों के
अनुसार क्षत्रिय ही राजा बन सकते थे राजा का काम किसानों व्यापारियों तथा शिल्पकार
से कर तथा भेंट वसूलना था धीरे-धीरे कुछ राज्य अपनी स्थाई सेना और नौकरशाही तंत्र
बनाने लगे थे
16 महाजनपदों में प्रथम : मगध
- Ø मगध बिहार राज्य में स्थित है
- Ø मगध छठी से चौथी शताब्दी ई. पूर्व में सबसे शक्तिशाली महाजनपद बन गया था
- Ø
इसके
शक्तिशाली होने के पीछे कई कारण है जैसे –
उपजाऊ भूमि थी जिससे अच्छी फसल होती थी लोहे की खदान उपलब्ध थीं
- Ø लोहे से औजार तथा हथियार बनाना आसान था
- Ø जंगलों में हाथी उपलब्ध थे
- Ø सेना में हाथियों को शामिल किया जाता था
- Ø गंगा और इसकी उपनदियों से आने जाने का रास्ता आसान और सस्ता था
- Ø मगध प्राकृतिक रूप से सुरक्षित था
- Ø मगध में योग्य तथा शक्तिशाली शासक थे
- जैसे - बिंबिसार , अजातसत्तु ,महापद्मनंद
,
- इन शासकों की बेहतर नीतियों के कारण
- मगध इतना समृद्ध था
- Ø प्रारंभ में राजगाह का मगध की राजधानी होती थी
- Ø परंतु चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में इसकी राजधानी पाटलिपुत्र को बनाया गया
मौर्य साम्राज्य 321-185 BC
धनानंद को चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा हराकर
मौर्य साम्राज्य की स्थापना की गई
Ø चंद्रगुप्त मौर्य के गुरु चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य
की सहायता की थी
Ø चाणक्य को विष्णुगुप्त तथा कौटिल्य भी कहा जाता है इन्होंने
अर्थशास्त्र नामक पुस्तक लिखी है
Ø इनका शासन पश्चिमोत्तर में अफगानिस्तान और बलूचिस्तान
तक फैला था
मौर्य साम्राज्य के जानकारी के स्रोत
साहित्यिक स्रोत पुरातात्विक
स्रोत
बौद्ध और जैन
साहित्य प्राचीन भवन,
स्तूप
अर्थशास्त्र, इंडिका
इमारतें, गुफाएं, मृदभांड
पुराण, मुद्राराक्षस अभिलेख
ब्राह्मण ग्रंथ
,असोक के अभिलेख, मूर्तिकला
- Ø चाणक्य द्वारा लिखी अर्थशास्त्र मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी देती है
- Ø अर्थशास्त्र में राजनीति तथा लोक प्रशासन का वर्णन मिलता है
- Ø यूनानी राजदूत मेगास्थनीज द्वारा लिखी गई इंडिका मौर्य साम्राज्य का वर्णन करते हैं
- Ø पुराणों से मौर्य साम्राज्य की जानकारी मिलती है
- Ø विशाखदत द्वारा रचित मुद्राराक्षस में यह बताया गया है कि किस प्रकार से चाणक्य नीति के द्वारा चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश को समाप्त करके मौर्य साम्राज्य स्थापित किया
- Ø ब्राह्मण ग्रंथ तथा धर्म शास्त्रों से उस समय के समाज तथा उनके नियमों का वर्णन मिलता है
- Ø मौर्य काल के प्राचीन भवन तथा स्तूप से जानकारी प्राप्त होती है
- Ø मौर्यकालीन मृदभांड उसे मौर्य इतिहास की जानकारी मिलती हैं
- Ø पत्थर पर लिखे अभिलेख मौर्य काल की महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं
- Ø मौर्य काल की मूर्तिकला मौर्य इतिहास को जानने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है
मौर्य साम्राज्य में प्रशासन
मौर्य साम्राज्य के पांच प्रमुख राजनीतिक
केंद्र थे और राजधानी और चार प्रांतीय
केंद्र
राजधानी– पाटलिपुत्र ( पटना )
चार प्रांतीय
केंद्र –
तक्षशिला ,
उज्जयिनी
तोसली, सुवर्ण गिरी
- Ø अशोक के अभिलेखों के अनुसार पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर
से लेकर आंध्र प्रदेश, उड़ीसा,
उत्तरांचल तक हर स्थान पर
एक जैसे संदेश उत्कीर्ण मिले हैं
- Ø तक्षशिला और उज्जैन दोनों लंबी दूरी वाले महत्वपूर्ण व्यापार मार्ग पर स्थित थे
- Ø स्वर्णगरी कर्नाटक में
- Ø साम्राज्य के उचित संचालन के लिए जमीन और नदी दोनों मार्गो से आना-जाना बना रहता था राजधानी से प्रांत तक जाने में कई सप्ताह या महीने का समय लगता होगा ऐसे में यात्रियों के विश्राम तथा खान-पान की व्यवस्था की गई होगीसुरक्षा का कार्य सेना को सौंपा गया था
सेना
Ø मेगास्थनीज के अनुसार - सैनिक गतिविधियों के लिए एक
समिति और छ: उपसमितियां थी
Ø मौर्य साम्राज्य के पास विशाल सेना थी
पहली- नौसेना का
संचालन
दूसरी- यातायात , खान पान की देखरेख
तीसरी- पैदल
सैनिकों का संचालन
चौथी- अश्वरोही
पांचवी- रथारोही
छठी- हाथियों
का संचालन
अन्य उपसमितियां
- Ø उपकरण को ढोने के लिए बैलगाड़ी का प्रबंध करना
- Ø सैनिकों के लिए भोजन की व्यवस्था करना
- Ø जानवरों के लिए चारे की व्यवस्था करना
- Ø सैनिक की देखभाल के लिए सेवकों को नियुक्त करना
अशोक का धम्म
- Ø अशोक के अनुसार धम्म के माध्यम से लोगों का जीवन इस संसार में तथा इसके बाद के संसार में अच्छा रहेगा
- Ø धम्म के प्रचार के लिए धम्म महामात नाम के अधिकारी नियुक्त किया जाता था
अशोक का धम्म की विशेषता
बड़ो का सम्मान
करना , सत्य बोलना
अपने से छोटों के
साथ उचित व्यवहार करना
विद्वानों
ब्राह्मणों के प्रति सहानुभूति की नीति
अहिंसा का संदेश , सभी धर्मों का सम्मान
दासों और सेवकों के
प्रति दयावान होना
मौर्य साम्राज्य का महत्व
Ø 19 वी सदी में जब इतिहासकारों ने भारत के आरंभिक
इतिहास को लिखना शुरु किया तो मौर्य साम्राज्य को इतिहास का प्रमुख काल माना गया क्योंकि
पहली बार चंद्रगुप्त मौर्य द्वारा एक अखंड भारत बनाया गया
- Ø मौर्य काल की मूर्तिकला सराहनीय थी
- Ø मौर्य काल उसको ने अपने नाम के आगे बड़ी बड़ी उपाधियां नहीं जोड़ी
- Ø इतिहासकारों ने अशोक को एक महान सम्राट माना
- Ø राष्ट्रवादी इतिहासकार के लिए अशोक एक प्रेरणा का स्रोत माना गया
- Ø मौर्य साम्राज्य मात्र 150 वर्ष तक ही चल पाया लेकिन भारतीय इतिहास में इसे महत्वपूर्ण माना जाता है
दक्षिण के राजा तथा सरदार
- Ø भारत के दक्षिण में कुछ सरदरियो का उदय हुआ
- Ø तमिलकम -- तमिलनाडु ,
आंध्र प्रदेश , केरल
- Ø तमिलकम क्षेत्र में चोल , चेर और पांडय जैसी सरदारी अतित्व में
आई यह राज्य काफी समृद्ध थे
सरदार तथा सरदारी
- Ø सरदार एक शक्तिशाली व्यक्ति होता है
- Ø सरदार का पद वंशानुगत भी हो सकता है और नहीं भी
- Ø सरदार के समर्थक उसके परिवार के लोग होते हैं
Ø
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सरदार के कार्य
- Ø अनुष्ठान का संचालन
- Ø युद्ध का नेतृत्व करना
- Ø लड़ाई ,
झगड़े, विवाद को सुलझाना
·
सरदार
अपने अधीन लोगों से भेंट लेता है
·
अपने
समर्थकों में उस भेंट को बांट देता है
·
सरदारी
में कोई स्थाई सेना या अधिकारी नहीं होते
·
इन
राज्यों के बारे में जानकारी प्राचीन तमिल संगम ग्रंथों से मिलती है
·
इन
ग्रंथों में सरदारों के बारे में विवरण है
·
कई
सरदार तथा राजा लंबी दूरी के व्यापार से भी राजस्व इकट्ठा करते थे
·
इनमें
सातवाहन तथा शक राजा प्रमुख हैं
दैविक राजा
- Ø राजाओं के द्वारा उच्च स्थिति प्राप्त करने का एक माध्यम देवताओं से जुड़ना था
- Ø कुषाण राजा जिन्होंने मध्य एशिया से लेकर पश्चिम उत्तर भारत तक शासन किया
- Ø इन शासकों ने मंदिरों में अपनी विशाल मूर्तियां लगवाई
- Ø शायद वह स्वयं को देवतुल्य दिखाना चाहते थे
- Ø कुषाण राजा ने अपने नाम के आगे देवपुत्र की उपाधि भी लगाई थी
- Ø कुषाण काल के सिक्कों में भी एक तरफ राजा और दूसरी तरफ देवता का चित्र होता था
- Ø उत्तर प्रदेश में मथुरा के पास माट के एक देवस्थान पर कुषाण राजा की विशाल मूर्ति मिली है
- Ø अफगानिस्तान के एक देवस्थान पर भी ऐसी ही मूर्ति मिली है
गुप्त साम्राज्य
- Ø मौर्य काल के बाद गुप्तकाल को भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है
- Ø गुप्त साम्राज्य की स्थापना श्रीगुप्त द्वारा लगभग 275 ईसवी में की गई थी
- Ø गुप्त काल की राजकीय भाषा संस्कृत थी
- Ø गुप्त काल में अधिकतर सिक्के सोने से बनाए जाते थे
गुप्त वंश के शासक
1. श्रीगुप्त
2. घटोत्कच
3. चंद्रगुप्त प्रथम
4. समुद्रगुप्त
5. चंद्रगुप्त द्वितीय
6. कुमारगुप्त प्रथम
7. स्कन्दगुप्त
8. विष्णुगुप्त
- Ø गुप्त साम्राज्य का इतिहास साहित्यिक स्रोतों, सिक्कों तथा अभिलेखों की सहायता से जानकारी
लेकर लिखा गया है
- Ø गुप्त साम्राज्य में कवियों द्वारा अपने राजा की प्रशंसा में लिखी गई प्रशस्ति भी एक ऐतिहासिक स्रोत है
- उदाहरण - प्रयाग प्रशस्ति
- Ø प्रयाग प्रशस्ति की रचना समुंद्र गुप्त के राजकवि हरिषेण द्वारा की गई इसे संस्कृत भाषा में लिखा गया था
जनता में राजा की छवि
- Ø जनता राजा के बारे में क्या सोचती थी इसके प्रमाण नहीं मिलते
- Ø ऐसे में इतिहासकारों ने जातक तथा पंचतंत्र जैसे ग्रंथों में दी गई कहानियों की समीक्षा करके पता लगाने का प्रयास किया जातक कथाएं पहली सहशताब्दी ईस्वी के मध्य पाली भाषा में लिखी गई थी
उदाहरण – गंद्तिंदु जातक
नामक कहानी
इसमें बताया गया कि
एक कुटिल राजा से उसकी प्रजा किस प्रकार से दुखी रहती है
बूढ़े महिला पुरुष ,किसान, पशुपालक,
ग्रामीण बालक, यहां तक कि जानवर भी इसमें
शामिल है
जब राजा अपनी पहचान
बदल कर प्रजा के बीच में पता लगाने गया कि लोग उसके बारे में कैसा सोचते हैं तो सब
ने उसकी बुराई करनी शुरू कर दी लोगों ने शिकायत की कि रात में डकैत लोगों पर हमला
करते हैं तथा दिन में राजा के अधिकारी टैक्स इकट्ठा करने के लिए इसीलिए लोग गांव
छोड़कर जंगल में बस गए
उपज बढ़ाने के तरीके
·
लोहे
के फाल वाले हल का प्रयोग करना
·
कुएं, तालाब और नहरों के द्वारा से सिंचाई
करना
·
पर्वतीय
क्षेत्रों में खेती के लिए कुदाल का उपयोग करना
·
गंगा
की घाटी में धान की रोपाई के कारण उपज बढ़ गई
ग्रामीण समाज में विभिन्नताएं
- Ø कृषि की नई तकनीक अपनाने के बाद उपज जरूर बढी लेकिन इसका लाभ सबको नहीं हुआ
- Ø खेती से जुड़े लोगों में भेद बढ़ता जा रहा था
- Ø बौद्ध कथाओं में भूमिहीन किसान तथा श्रमिक ,जमींदार का उल्लेख मिला है
- Ø पाली भाषा में गहपति शब्द का प्रयोग छोटे किसान और जमीदारों के लिए किया जाता था
- Ø बड़े-बड़े जमीदार और गांव के प्रधान शक्तिशाली थे जो कि किसानों पर अपना नियंत्रण रखते थे
- Ø गांव के प्रधान का पद वंशानुगत होता था
गहपति
–
किसान , जमींदार , संभ्रात
व्यक्ति , व्यापारी गहपति घर का मुखिया होता था और घर में
रहने वाली महिलाओं, बच्चों, नौकरौ और
दासों पर नियंत्रण करता था घर से जुड़े भूमि, जानवर या अन्य
सभी वस्तुओं का वह मालिक होता था कभी-कभी इस शब्द का प्रयोग नगरों में रहने वाले
संभ्रांत व्यक्तियों और व्यापारियों के लिए भी होता है
Ø आरंभिक तमिल संगम साहित्य में भी गांव में रहने वाले
विभिन्न वर्गों के लोगों का उल्लेख है
जैसे – वेल्लार या बड़े जमींदार ( वेल्लार – कृषि
व्यवसाय )
हलवाहा या उलवर
,दास
भूमिदान और नए संभ्रांत ग्रामीण
- Ø भूमिदान अधिकतर ब्राह्मणों को या धार्मिक संस्थाओं को दिए जाते थे
- Ø इसवी की आरंभिक शताब्दियों से ही भूमि दान के प्रमाण मिले है
- Ø कई अभिलेखों में भूमि दान का उल्लेख मिलता है
- Ø कुछ अभिलेख पत्थरों पर लिखवाए गए थे
- Ø अधिकतर भूमिदान का उल्लेख ताम्र पत्रों पर उत्कीर्ण मिला है
- Ø आरंभिक अभिलेख संस्कृत भाषा में थे
- Ø लेकिन 7 वीं शताब्दी के बाद के अभिलेख संस्कृत, तमिल ,तेलुगू
भाषाओं में भी मिले हैं
- उदाहरण
- § गुप्त शासक चंद्रगुप्त द्वितीय की पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाद दक्कन के वाकाटक परिवार में हुआ था
- § संस्कृत धर्मशास्त्र के अनुसार महिलाओं का भूमि का अधिकार नहीं होता था
- § लेकिन अभिलेख से जानकारी मिली है - कि प्रभावती भूमि की मालकिन थी और प्रभावती ने भूमिदान भी किया थी
- § शायद इसलिए कि वह एक रानी थी और ऐसा इसलिए भी संभव हो सकता हैकि धर्मशास्त्रों को हर स्थान पर समान रूप से लागू नहीं किया जाता हो
- o भूमिदान के अभिलेख देश के कई हिस्सों से मिले हैं
- o अलग-अलग क्षेत्रों में अलग-अलग तरह की भूमि दान में दी गई है
- o कुछ स्थानों पर बहुत छोटी भूमि दान में दी है
- o तो कुछ स्थानों में बहुत बड़ी-बड़ी भूमि दान में दी गई है
- o दान प्राप्त करने वाले लोगों के अधिकारों में भी अलग-अलग क्षेत्रों में परिवर्तन देखने को मिला है
- इतिहासकारों में भूमिदान के प्रभाव को लेकर विवाद
- Ø कुछ इतिहासकार मानते हैं कि शासक भूमिदान के द्वारा कृषि को प्रोत्साहित करना चाहते थे
- Ø कुछ इतिहासकार कहते हैं कि भूमिदान एक संकेत है राजनीतिक प्रभुत्व का दुर्बल होने का
- Ø राजा समर्थन जुटाने के लिए भूमिदान करते थे
नगर एवं व्यापार
नए नगर
·
अधिकांश
नगर महाजनपदों की राजधानियां थे
·
ज्यादातर
नगर संचार मार्ग के किनारे बसे थे
·
पाटलिपुत्र
( पटना ) - नदी के किनारे
·
उज्जयिनी
- भूतल मार्ग के किनारे
·
पुहार-समुद्र
तट के किनारे
·
मथुरा
- व्यवसायिक सांस्कृतिकऔर राजनीतिक गतिविधि का केंद्र
नगरीय जनसंख्या
·
नगरों
में विभिन्न प्रकार के लोग रहते थे ,शासक किलेबंद नगरों में रहते थे
·
इन
क्षेत्रों से कई पुरा अवशेष प्राप्त हुए हैं
- ·
जैसे
- मिट्टी के कटोरे और थालियां जिन पर चमकदार कलई चढ़ी है तथा सोने-चांदी, कांस्य , तांबे
,
- ·
हाथी
दांत, शीशे जैसे अलग-अलग पदार्थों के गहने,उपकरण ,हथियार, बर्तन आदि
- Ø दूसरी शताब्दी ई. तक आते-आते कई नगरों से दानात्मक अभिलेख प्राप्त हुए
- Ø इन अभिलेखों में दान देने वाले का नाम तथा उसका व्यवसाय भी लिखा था
- Ø इनमें नगरों में रहने वाले धोबी, बुनकर, बढ़ाई,
लिपिक, कुम्हार, स्वर्णकार
अधिकारी, धर्मगुरु, व्यापारी और राजाओं
के विवरण लिखे होते हैं
- Ø श्रेणी का भी उल्लेख मिला है , श्रेणी व्यापारियों के संघ को कहा
जाता था
- Ø यह व्यापारी लोग कच्चे माल को खरीद कर उनसे सामान बनाकर बाजार में बेच देते थे
उपमहाद्वीप और उसके बाहर का व्यापार
- Ø भारत का व्यापार प्राचीन काल से ही बाहर से होता था
- Ø हमें हड़प्पा सभ्यता में भी ऐसे प्रमाण मिले हैं
- Ø छठी शताब्दी ईसा पूर्व से ही उपमहाद्वीप में जलमार्ग और भू मार्ग का जाल बिछ गया था
- Ø भू मार्ग के जरिए मध्य एशिया तथा उससे आगे भी व्यापार होता था
- Ø समुद्र तट पर बने बंदरगाहों से अरब सागर होते हुए
उत्तरी अफ्रीका, पश्चिमी एशिया
तक
- Ø बंगाल की खाड़ी से चीन और दक्षिण पूर्व एशिया की तरफ
- Ø शासक इन मार्गों पर नियंत्रण करके व्यापारियों से सुरक्षा के बदले धन लेते थे
- Ø इन मार्गों पर जाने वाले व्यापारियों में पैदल फेरी लगाने वाले व्यापारी बैलगाड़ी और घोड़े पर जाने वाले व्यापारी समुद्री मार्ग से भी लोग यात्रा करते थे जो खतरनाक लेकिन लाभदायक भी था
- Ø यह व्यापारी नमक,
कपड़ा, अनाज, धातु से
बनी चीज ,पत्थर, लकड़ी ,जड़ी बूटी जैसे अनेक सामान को एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाते थे
- Ø रोमन साम्राज्य में काली मिर्च जैसे मसाले तथा कपड़े और जड़ी बूटियों की बहुत भारी मांग थी
- Ø इन वस्तुओं को अरब सागर के माध्यम से विभिन्न क्षेत्रों तक पहुंचाया जाता था
सिक्के और राजा
व्यापार
के लिए सिक्कों का प्रयोग किया जाता था
सिक्कों
के प्रयोग से व्यापार काफी हद तक आसान हो गया चांदी तथा तांबे के सिक्के सबसे पहले
ढाले गए ( छठी शताब्दी ईसा पूर्व ) इन सिक्कों को आहत सिक्के कहा जाता था
ऐसे
बहुत सारे सिक्के विभिन्न स्थलों पर खुदाई के दौरान मिले हैं
मुद्रासस्त्रियो
ने इन सिक्कों का अध्ययन करके इनके वाणिज्यिक प्रयोग के क्षेत्रों का पता लगाया है
आहत
सिक्के पर बने प्रतीकों से पता लगता है कि इन्हें विभिन्न राजाओं द्वारा जारी किया
गया था
लेकिन
ऐसा भी संभव है कि धनी लोगो , व्यापारियों
, नागरिकों ने भी इस प्रकार के कुछ सिक्के जारी किए हैं
शासकों
की प्रतिमा और उनके नाम के साथ
सबसे
पहले सिक्कों को हिंद- यूनानी शासकों ने जारी किया था
सोने
के सिक्के सबसे पहले पहली शताब्दी ईस्वी में कुषाण शासकों के द्वारा जारी किए गए
उत्तर
और मध्य भारत में ऐसे सिक्के मिले हैं
सोने
के सिक्कों का प्रयोग संभवत बहुमूल्य वस्तुओं के व्यापार में किया जाता होगा
दक्षिण भारत में बड़ी संख्या में रोमन सिक्के मिले हैं
पंजाब
और हरियाणा जैसे क्षेत्रों के यौधेय शासकों द्वारा तांबे के सिक्के भी जारी किए गए
थे
गुप्त
काल में कुछ शासकों द्वारा सोने के भव्य सिक्के जारी किए गए इन सिक्कों में सोना
उच्च गुणवत्ता का था
छठी शताब्दी ई. में सोने के सिक्के मिलने कम क्यों हो
गए ?
- 1. कुछ इतिहासकार का मानना है कि रोमन साम्राज्य का पतन होने के कारण व्यापार में कमी आई
- 2. अन्य इतिहासकारों का मानना है कि इस काल में नए नगरों और व्यापार के नए तंत्रों का उदय हुआ था
- 3. आर्थिक संकट
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01. | ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ | |
02. |
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03. |
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अभिलेखों का अर्थ कैसे निकाला जाता है ?
अभिलेख का अर्थ निकालने के लिए विद्वान
विभिन्न लिपियों का अध्ययन करते हैं प्राचीन लिपियों का आधुनिक लिपियों से मिलान
करते हैं
ब्राह्मी लिपि का
अध्ययन
- भारत की जितनी भी आधुनिक भाषाएं हैं इन में प्रयुक्त लगभग सभी लिपियों का मूल ब्राह्मी लिपि है
- अशोक के जो अभिलेख मिले हैं वह अधिकतर ब्राह्मी लिपि में थे
- 18 वीं सदी में यूरोप के विद्वानों ने भारतीय पंडितों की सहायता लेकर आज के समय की बंगाली और देवनागरी लिपि में कई पांडुलिपियों का अध्ययन शुरू किया इनके अक्षर का प्राचीन अक्षरों से तुलना की
- अभिलेखों का अध्ययन करने वाले कुछ विद्वानों ने कई बार अनुमान लगाया कि यह संस्कृत में लिखें लेकिन यह प्राकृत में लिखे गए थे
- फिर कई दशकों की मेहनत के बाद जेम्स प्रिंसेप ने अशोक के काल की ब्राह्मी लिपि में लिखे अभिलेखों का अर्थ 1838 में निकाल लिया
अभिलेखों
से प्राप्त ऐतिहासिक साक्ष्य
अशोक की उपाधि
- देवंप्रिया-देवताओ का प्रिय
- प्रियाद्सी-देखने में सुन्दर
- मनोहर मुखाकृति वाला राजा
खरोष्ठी लिपि को कैसे पढ़ा गया
- खरोष्ठी लिपि में लिखे गए अभिलेख पश्चिमोत्तर में मिले हैं
- इस क्षेत्र में हिंद यूनानी शासकों का शासन था
- इन शासकों ने सिक्कों में अपने नाम यूनानी और खरोष्ठी लिपि में लिखवाए थे
- यूनानी भाषा पढ़ने वाले यूरोपीय विद्वानों ने अक्षरों का मेल किया
- और इनका अर्थ निकालने का प्रयास किया
अभिलेख साक्ष्य सीमा
- अक्षरों
का हल्के ढंग से उत्कीर्ण होना , अभिलेखों
का नष्ट हो जाना
- अभिलेखों
पर अक्सर लुप्त होना , कुछ
अभिलेख सुरक्षित नहीं बचे
- अभिलेख के शब्दों का वास्तविक अर्थ की पूरी जानकारी न होना
- अभिलेखों में रोजमर्रा की जिंदगी के बारे में जानकारी ना होना जानकारी ना होना
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